कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न और गजराज के तुल्य महत्त्वपूर्ण है मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न और गजराज के तुल्य महत्त्वपूर्ण है मानव जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

जसाई, 8 फरवरी, 2024
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी 2024 का मर्यादा महोत्सव करने हेतु वाशी-नवी मुंबई की ओर पधार रहे हैं। आज पूज्यप्रवर का पदार्पण छत्रपति शिवाजी एवं उनके गुरु को समर्पित ‘शिव समर्थ स्मारक’ में हुआ। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि मनुष्य जन्म दुर्लभ बताया गया है। जो इस दुर्लभ जन्म का धर्म के संदर्भ में लाभ उठा लेता है, वह मानो धन्य, कृत-कृत बन जाता है।
जो मनुष्य इस जन्म को पापों, व्यसनों में गँवा देता है, वह एक अभागा आदमी होता है। धर्म का मौका प्राप्त हो गया पर भोग के कारण आदमी धर्म को छोड़ देता है तो मानना चाहिए कि उसने कल्पवृक्ष को उखाड़कर घर में धतूरे का वृक्ष लगा दिया है। चिंतामणी रत्न को फेंककर काँच के टुकड़े को ग्रहण करता है। किसी के पास गजराज था उसको बेचकर वह गधे को खरीदकर घर में रखता है। ऐसे आदमी नादान कहलाते हैं। मानव जीवन, कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न और गजराज से कम नहीं है इसका बड़ा महत्त्व है। इसको व्यर्थ खो देना अभागेपन की बात हो जाती है। जो आदमी मानव जीवन पाकर पाप कार्यों में रचा-पचा रहता है, वह तो पापात्मा-दुरात्मा है, मानव जन्म रूपी पूँजी को खोकर और नीचे चला जाता है। एक आदमी न ज्यादा धर्म करता है, न ज्यादा पाप करता है, वह मूल पूँजी को सुरक्षित रख लेता है, न कमाया न गँवाया।
एक आदमी पाप तो करता नहीं है, पर तपस्या-साधना करता है, साधु बन जाता है, श्रावक बन जाता है, वह आदमी मरकर देवगति में जन्म ले सकता है। मूल पूँजी को बढ़ा लेता है। इस जीवन से मोक्ष में जाना तो बहुत ही ऊँची चीज हो जाती है। वैमानिक देवगति पाना भी बड़ी बात है। सम्यक्त्वी होना बहुत बड़ी सफलता है। हमारा दृष्टिकोण आध्यात्मिक रहे। सम्यक्त्व आ गया तो फिर आत्मा को मोक्ष कभी न कभी तो जाना ही है। मनुष्य ही मोक्ष में जा सकता है। हमें मनुष्य जन्म प्राप्त है, इसका आध्यात्मिकता में उपयोग करें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।