धर्म के मर्म को आत्मसात करें

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धर्म के मर्म को आत्मसात करें

नोखा।
व्यक्ति समय का नियोजन करे। यूँ ही अनमोल रत्न मानव जीवन को न गँवाएँ। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है। धर्म, पाप-पुण्य, सेवा, अच्छा-बुरा जानता है। रात्रि में सोने से पहले चिंतन करें क्या? आज क्या अच्छा किया, क्या बुरा किया? धर्म के मर्म को समझें, कुछ परिवर्तन हुआ या ऐसे ही क्रोध, मान, माया, लोभ बढ़ रहे हैं। आवश्यकता है हमारा जीवन बोले कि धार्मिक हैµयह मार्मिक उद्गार तेरापंथ भवन, नोखा में डॉ0 साध्वी चरितार्थप्रभा जी ने व्यक्त किए। प्रारंभ में साध्वी आगमप्रभा जी ने आलस्य प्रमाद छोड़ करके कुछ समय धर्म-ध्यान अध्यात्म में लगाने की प्रेरणा दी।