चंड और घमंड प्रकृतियाँ मोक्ष में हैं बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चंड और घमंड प्रकृतियाँ मोक्ष में हैं बाधक : आचार्यश्री महाश्रमण

सानपाड़ा, 10 फरवरी, 2024
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः नवी मुंबई के सानपाड़ा पधारे। वीतराग समवसरण में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि आध्यात्मिक साहित्य में मोक्ष की बात आती है। जन्म-मरण की परंपरा से छुटकारा पाकर हमेशा के लिए शरीर-मुक्त और दुःख-मुक्त अवस्था में रहना मोक्ष की स्थिति होती है। प्रश्न होता है-मोक्ष कौन प्राप्त कर सकता है? और कौन प्राप्त नहीं कर सकता? अभव्य जीव कभी भी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते, भव्य जीव ही मोक्ष में पहुँच सकते हैं। इस संसार में भव्य जीव भी हमेशा रहेंगे, यह भी सिद्धांत है।
मोक्ष प्राप्ति के कुछ बाधक तत्त्व भी बताए गए हैं। जो चंड प्रकृति का होता है, गुस्सा, आवेश करने वाला व्यक्ति उस स्थिति में मोक्ष में नहीं जा सकता। गुस्से के कारण व्यक्ति स्वयं व्याकुल हो सकता है, उससे दूसरों को भी अशांति हो सकती है। ज्यादा गुस्सा सामान्यतया लाभदायी नहीं हो सकता है, वह तो कठिनाई पैदा करने वाला हो सकता है। कुछ व्यक्ति शांत स्वभाव वाले होते हैं, कोई कुछ भी कह दे, शांत रहते हैं। यह भी एक तरह की साधना है।
संत की करुणा और क्षमाशीलता के लिए एक कवि ने कहा है-
संत हृदय नवनीत समाना,
कहा कबिन्ह परि कहै न जाना।
निज परिताप द्रवहि नवनीता,
पर दुःख द्रवहि सुसंत पुनीता।।
कवि ने कहा कि संत हृदय को मक्खन के समान बताया गया है, परंतु उन्होंने कहना नहीं जाना, क्योंकि मक्खन तो स्वयं को ताप मिलने से पिघलता है पर संत हृदय दूसरों के दुःख को देखकर पिघल जाते हैं। इसलिए संत का हृदय तो नवनीत से भी ऊपर होता है। अहिंसा भगवती है, जीवनदाता है। जीवन में अहिंसा धर्म का आचरण हो। हम जीवन में गुस्से से बचने का प्रयास करें, क्षमा का भाव रखें। क्षमा वीर पुरुष का आभूषण होता है। मति और ऋद्धि का घमंड करने वाला भी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता। हमें किसी भी चीज का घमंड नहीं करना चाहिए। न ज्ञान का अहंकार, न पैसे का, न ही सत्ता या ऐश्वर्य का अहंकार करना चाहिए। चंड और घमंड दोनों से बचने का प्रयास करें। असंविभागी न बनें, दूसरों का हक छीनने का प्रयास नहीं करें। जीवन में सद्गुणों के भूषण रहें, यह काम्य है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि महापुरुषों की सन्निधि चंद्रमा और चंदन से भी अधिक शीतलता प्रदान करने वाली होती है। जो व्यक्ति शीतल और शांत हो जाता है, वह व्यक्ति अपनी इच्छित वस्तु को प्राप्त कर लेता है। जिज्ञासा का समाधान प्राप्त करने के लिए भी व्यक्ति महापुरुषों की सन्निधि में पहुँचते हैं। पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचने से अनेक लोगों की जिज्ञासाएँ पूर्ण हो जाती हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में अमृतलाल जैन, तेरापंथ सभा, वाशी के अध्यक्ष विनोद बाफना, जयपुरिया स्कूल के चेयरमैन नवनीत जयपुरिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।