मर्यादा में चलने वाला साधक अपनी आत्मा को निर्मल व उज्ज्वल बनाता है

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मर्यादा में चलने वाला साधक अपनी आत्मा को निर्मल व उज्ज्वल बनाता है

जसोल
विनयशीलता व कृतज्ञता से जीवन श्रेष्ठ बनता है। मर्यादा जीवन का शंृगार है, विकास का आधार है। विशुद्ध आचरण से ही ज्ञान की शोभा होती है। साध्वी रतिप्रभा जी ने पुराना ओसवाल भवन में आयोजित 160वें मर्यादा महोत्सव में यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आचार्य भिक्षु के पवित्र करकमलों से लिखा हुआ मर्यादा पत्र तेरापंथ धर्मसंघ का छत्र है। जो साधु विनीत होते हैं, उसके गुणगान आचार्य स्वयं करते हैं। साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि मर्यादा में चलने वाला साधक अपनी आत्मा को निर्मल व उज्ज्वल बनाता है। मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व मर्यादा महोत्सव है। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कहा कि मर्यादा संयम की सुरक्षा है। मर्यादा ही संघ को फलवान बनाती है। साध्वी पावनयशा जी ने मर्यादा महोत्सव पर कई विशेष बातों का उल्लेख किया।
कार्यक्रम में सिवांची-मालाणी तेरापंथ संस्थान अध्यक्ष डूंगरचंद सालेचा, नेनमल कोठारी, मदुरै, ज्ञानशाला प्रभारी संपतराज चोपड़ा, सभा मंत्री कांतिलाल ढेलड़िया, प्रवीण भंसाली, तेयुप उपाध्यक्ष ललित सालेचा सहित प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। उपासिका लीलादेवी सालेचा सहित ग्रुप द्वारा एक संवाद की प्रस्तुति दी गई। तेरापंथ महिला मंडल व तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा सामूहिक गीतिका का संगान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मंत्री कांतिलाल ढेलड़िया ने किया।