मर्यादा में चलने वाला साधक अपनी आत्मा को निर्मल व उज्ज्वल बनाता है

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मर्यादा में चलने वाला साधक अपनी आत्मा को निर्मल व उज्ज्वल बनाता है

कालू
तेरापंथ भवन में साध्वी उज्ज्वलरेखा जी के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ का महाकुंभ 160वाँ मर्यादा महोत्सव मनाया गया। वसंत पंचमी के दिन प्रारंभ होने वाले इस त्रिदिवसीय महामहोत्सव के दूसरे दिन का शुभारंभ ‘भीखण जी स्वामी भारी मर्यादा बांधी संघ में’ गीत के संगान से हुआ। साध्वी उज्ज्वलरेखा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु हुए हैं। आचार्य भिक्षु ने संघ के कुशल संचालन के लिए अनेक मर्यादाएँ बनाई हैं।
आचार्य भिक्षु ने इस तेरापंथ धर्मसंघ को मर्यादाओं का जो छत्र दिया है, वो हम सबके विकास का आधार है। जहाँ मर्यादा है वहाँ शांति है, जहाँ मर्यादा है वहाँ व्यवस्था है। हम मर्यादा की रक्षा करेंगे तो मर्यादा हमारी रक्षा करेगी। मर्यादा को हम महत्त्व देंगे तो मर्यादा हमें महत्त्व देगी। साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने कहा कि मर्यादा एक कवच है, मर्यादा पतंग की डोर है, संगठन की पहली नींव है मर्यादा। आचार्य भिक्षु ने मर्यादा बनाने के दो महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण रखेµपहला व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा और दूसरा अनुशासन की शंृखला ना टूटे। मर्यादाओं में रहकर ही हम जीवन का विकास कर सकते हैं। सभी साध्वियों ने सामूहिक गीत का संगान किया। महिला मंडल द्वारा गीतिका की प्रस्तुति दी गई। सभा अध्यक्ष बुद्धमल लोढ़ा ने अपने विचार व्यक्त किए।