गीतिका
साध्वी शीलयशा
जयाचार्य को शीश झुकाएं, उपकारों को भूल न पाएँ।
तेरापंथ सरताज लारे, म्हारो भाग जागे।
म्हाने दीपां रो दुलारो, प्यारो-प्यारो लागे।।
(1) हे प्रभु यह तेरापंथ, श्री भिक्षु का फरमान है।
दूरदर्शिता स्वामी जी की, पाया पथ अम्लान है।
सुदृढ़ तेरापंथ मर्यादा, चित्ताकर्षक सबसे ज्यादा।
और नंदनवन सो भैक्षव शासन सुखमय लागे।।
(2) जयाचार्य री प्रवर व्यवस्था, पायो संघ निखार है।
संघ शिलोच्चय शिखर चढ़े आचार्य का उद्गार है।
तेरापंथ बना मेरा पथ, संकट मोचक यह मेरापंथ।
हुए समर्पित उनके मुक्ति पथ रो मार्ग आगे।।
(3) महाश्रमण है कुशल सारथी और शुद्ध विचार है।
भी भा रा ज म मा डा का तु म, महाश्रमण दरबार है।
भीखण जी की महादेन है तेरापंथ में अमन चैन है।
सब कुछ कर्त्ता हर्ता गुरुवर ज्योतिर्मय गण है आगे।।
(4) श्रद्धा, साहस और समर्पण अनुशासन री पहचान है।
अवदानों पर बढ़ते जाएँ, श्रीधन का आह्वान है।
मर्यादा ही जीवन धन है, न्योछावर करते तन-मन है।
ओ भैक्षव शासन प्राणां सूं भी प्यारो लागे।।
लय: तेरापथ रो भाग्य विधाता