साधना के द्वारा आत्मा को भावित करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधना के द्वारा आत्मा को भावित करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

पनवेल, मुंबई, २५ फरवरी, २०२४

विगत लगभग २५० दिनों से बृहत्तर मुंबई में अध्यात्म की गंगा बहाते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी आज पनवेल पधारे। मुंबई स्तरीय मंगल भावना समारोह में आचार्य श्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि आत्मा अध्यात्म जगत का एक महत्वपूर्ण शब्द है। परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा आत्मा से संबंधित है। परमात्मा तो सिद्ध भगवान हैं, अर्हतों को भी एक अपेक्षा से परमात्मा कह सकते हैं। जो साधु पुरुष, संत-चारित्रवान होते हैं, वे महात्मा हैं। जो गृहस्थ होते हुए भी अहिंसा, ईमानदारी, संयम आदि का पालन करते हैं, वे सदात्मा होते हैं। जो पाप कर्म करने वाले, बुरे काम करने वाले, हत्या, झूठ, कपट, चोरी आदि में रचे-पचे रहने वाले हैं, वे दुरात्मा होते हैं।
परमात्मा, महात्मा तो वन्दनीय है। सदात्मा सम्माननीय होते हैं, कोई भी आत्मा दुरात्मा ना बनें। मानव जीवन हमें प्राप्त है, इस मानव जीवन का आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करें। आत्मा के कल्याण की दृष्टि से बढ़िया उपयोग करें। शरीर अध्रुव, अशाश्वत और नाशवान है, धन-सम्पति भी शाश्वत नहीं है, मृत्यु भी निकट आ रही है। हमें धर्म का संचय करना चाहिए जो आगे भी काम आ सकेगा। हम भगवान महावीर के जैन शासन में भिक्षु स्वामी से जुड़े शासन में साधना कर रहे। आचार्य तो स्वयं का कल्याण करने वाले व दूसरों को सन्मार्ग बताने वाले होते हैं। आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन शुरू किया था। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराते थे। हम साधना के द्वारा हमारी आत्मा को भावित करने का प्रयास करें।

आचार्य प्रवर ने आगे कहा- हमारा बृहत्तर मुम्बई में अच्छा चतुर्मास, शेषकाल का अच्छा भ्रमण और प्रवास भी हो गया। अब चलते-चलते पनवेल आ गए हैं। अब आगेे कोंकण क्षेत्र, पुणे, जालना, खान्देश आदि-आदि क्षेत्रों से होते हुए सूरत में अगला चतुर्मास है। अब मुम्बई से विदाई लेना है। यहां हमारा इतना बड़ा श्रावक समाज है। इतना बड़ा महानगर है। यहां का प्रवास अब सम्पन्नता की ओर है। कितने कितने लोग सम्पर्क में आए हैं। व्यवस्था समिति, क्षेत्रीय सभाएं, कार्यकर्ताओं आदि ने अपने अपने ढंग से सेवा दी है, प्रवास का लाभ उठाया है, श्रम और शक्ति का नियोजन किया है। वृहत्तर मुंबई के श्रावक-श्राविका समाज में धार्मिकता बनी रहे और धर्म संघ की धार्मिक आध्यात्मिक सेवा करते रहें।
साध्वीप्रमुखा श्री जी ने फरमाया कि वे व्यक्ति जीवन में धन्यता का अनुभव करते हैं जिन्हें गुरु का साक्षात् दर्शन उपलब्ध होता है, जिन्हें गुरुवाणी श्रवण करने का अवसर मिलता है, जो गुरु की उपसना में रहते हैं। मुंबईवासी इस माने में धन्य हैं कि उन्हें परमपूज्य आचार्य प्रवर के लंबे प्रवास का अवसर मिला। पूज्य प्रवर ने मुंबईवासियों को उन्मुक्त हाथों से समय तो दिया ही पर साथ में वो तत्त्व भी दिए जिनसे लोगों का आध्यात्मिक लक्ष्य स्पष्ट हुआ है। आचार्य प्रवर ने अपने प्रवचनों के माध्यम से जो अमृत धारा बहाई उसमें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र का मिश्रण था। आचार्य प्रवर ने जो श्रम किया वह अनिर्वचनीय है। हम धन्य हैं कि हमें ऐसे गुरु मिले हैं जो हमें गंतव्य तक पहुंचाने वाले, मार्गदर्शन दिखाने वाले हैं।
मंगल प्रवचन के उपरान्त पनवेल के स्वागताध्यक्ष राजेन्द्र रांका, जतनलाल मेहता, सी.के.टी. कॉलेज ऑफ आर्ट, कॉमर्स एण्ड साइन्स के ऑनर ठाकुर परिवार की ओर से अर्चना ठाकुर ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। पनवेल की ओर से आचार्यश्री को नागरिक अभिनंदन पत्र को समर्पित किया गया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष बालचंद चोरड़िया की ओर से संयोजक चतरलाल मेहता, तेयुप अध्यक्ष विमल बाफना व तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष भारती बाफना ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। सुनिता बड़ाला ने ग्यारह की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल एवं तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी प्रस्तुति दी। पनवेल महानगर के विपक्ष नेता प्रीतम म्हात्रे ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
मंगल भावना समारोह में मुम्बई प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, आचार्यश्री के संसारपक्षीय भाई श्री सूरजकरण दूगड़ व श्री श्रीचंद दूगड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।
तेरापंथ समाज-पनवेल व सूरत समाज ने अपनी-अपनी गीतों का संगान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में ध्वज हस्तांतरण के क्रम में मुम्बई प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों ने सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों को ध्वज हस्तांतरित किया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।