अखंड, प्रचंड और मजबूत हो आराध्य के प्रति भक्ति : आचार्यश्री महाश्रमण
सी. बी. डी. बेलापुर। २२ फरवरी, २०२४
महामनीषी आचार्य श्री महाश्रमणजी वाशी से विहार कर सी.बी.डी. बेलापुर पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि श्रमण प्रतिक्रमण में पांच पाटियां विशेष है जो श्रावक प्रतिक्रमण से अलग है। पांचवी पाटी में भक्ति का स्वर मुखर होता है।
जहां प्रारम्भ में भगवान ऋषभ से लेकर भगवान महावीर तक के तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है, वहीं आगे निर्ग्रंथ प्रवचन के प्रति एक श्रद्धा-आस्था का भाव अभिव्यक्त किया गया है। भक्ति में भी शक्ति हो सकती है। आराध्य के प्रति हमारी भक्ति निश्छिद्र होनी चाहिए। यथार्थ का अन्वेषण हो जाए तो फिर उसके प्रति आस्था होनी चाहिए। तीर्थंकर अपने आप में वीतराग होते हैं, ज्ञान देने वाले, मार्ग दर्शन देने वाले, मोह मुक्त और ज्ञान युक्त होते हैं, इसलिए हम उनकी भक्ति करते हैं। आराध्य के प्रति समर्पण में शर्त नहीं होनी चाहिए। हमारा समर्पण हमारे आराध्य के प्रति और हमारे सिद्धांत के प्रति होना चाहिए। समझकर जिसको आराध्य बना लिया फिर उसके प्रति सघन भक्ति, अंतर्मन से समर्पण होना चाहिए।
हमारी भक्ति अर्हतों के प्रति, सिद्धों के प्रति, पंच परमेष्ठि के प्रति होनी चाहिए। धर्म के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव होना चाहिए। समस्या आने पर भी धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। विपत्ति तो शायद परीक्षा के लिए आ सकती है कि आपकी धर्म के प्रति आस्था कितनी मजबूत है। हमें परीक्षा में फेल नहीं होना है, धर्म के प्रति सुदृढ़ आस्था रखनी है। यह शरीर भले छूट जाए पर धर्म का धागा अखंड बना रहे। देवता भी धर्म से डिगाये तो डिगना नहीं चाहिये। देव-गुरु और धर्म पर आस्था रखें, उनके प्रति हमारी भक्ति अखंड-प्रचंड, मजबूत रहे। सिद्धान्तों के प्रति, नियमों के प्रति भी निष्ठा का भाव रहे। जो व्रत लिए हैं, उन पर व्यक्ति संकल्पित रहे तो अपने पर अपना अनुशासन हो सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने फरमाया कि आचार्यवर ने वृहत्तर मुंबई में चातुर्मास और वाशी में मर्यादा महोत्सव कार्यक्रम संपन्न किया और अब सूरत चातुर्मास के लक्ष्य के साथ आगे गतिमान हैं। मुनि के लिए विहार चर्या को प्रशस्त माना गया है। जैन साधुओं ने पद यात्रा का संकल्प स्वीकार किया है। भगवान महावीर ने कितनी पदयात्रा की, आचार्य भिक्षु ने भी पद यात्रा का संकल्प लिया था। आचार्यवर तो महान यायावर बन गए क्योंकि आचार्यवर ने सुदूर यात्राएं की, विदेश की यात्रा भी की। पदयात्रा से दूसरों को बहुत कुछ दिया जा सकता है।
महात्मा गांधी कहते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। आचार्यप्रवर भी गांव-गांव में सलक्ष्य यात्रा कर रहे हैं। जो व्यक्ति यात्रा करता है उसका मस्तिष्क और चिंतन भी विशाल होता है। आचार्यवर की यात्रा के दौरान व्यापक संपर्क होता है, लोग अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं।
पूज्यवर की अभिवंदना में स्थानीय तेयुप अध्यक्ष नितिन मेहता, बेलापुर जैन संघ से तेजराज संचेती, विजय संचेती एवं डॉ नाथ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल, स्थानीय तेरापंथ समाज, तेरापंथ कन्या मंडल ने पृथक-पृथक गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों एवं क्षेत्र के दिव्यांग बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।