परम जय को पाने की दिशा में आगे बढ़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

परम जय को पाने की दिशा में आगे बढ़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

कामोठे, मुंबई। २४ फरवरी, २०२४

अध्यात्म साधना के शिखर पुरुष आचार्य श्री महाश्रमणजी आज खारघर से विहार कर कामोठे पधारे। मंगल देशना में अमृत वर्षा कराते हुए अमृत पुरुष ने फरमाया कि दुनिया में जय-पराजय की बात यदा-कदा सामने आती है। चुनाव में, युद्ध में, न्यायालय में कोई जीत जाता है तो कोई हार जाता है। यह जय-पराजय संसार में होती है। हम अध्यात्म के क्षेत्र में चिन्तन करें। शास्त्रकार ने बताया कि समरांगण में एक आदमी १० लाख योद्धाओं को जीत लेता है, तो उसकी विजय हो जाती है परंतु परम जय उसकी होती है, जो एक अपनी आत्मा को जीत लेता है। आत्मा को जीतना बड़ा कठिन कार्य होता है।
प्रश्न है कि आत्मा को कैसे जीतें? आत्मा तो अदृश्य है, उस पर प्रहार कैसे करें?
कर्म से आवृत्त अवस्था में अमूर्त आत्मा पर मूर्तता छायी रहती है, फिर भी उसको आंखों से नहीं देखा जा सकता। कर्म पुद्गल बड़े सूक्ष्म होते हैं। आत्मा को तो हम नहीं देख सकते पर शरीर, वाणी और मन को जान रहे हैं। आत्मा को जीतने के लिए हमारा शरीर, वाणी, मन और इंद्रियां हमारे नियंत्रण में रहे। पूर्णतया वीतरागता प्राप्त हो जाए तो बड़ी जीत हो सकती है। शरीर आदि पर अनुशासन हो जाये तो उसका प्रभाव आत्मा पर पड़ सकता है। तपस्या आदि से निर्जरा हो सकती है, ध्यान-साधना भी निर्जरा का साधन है। शरीर से असंयम और हिंसा नहीं हो, खाने में आसक्ति न हो, वाणी का भी विवेक हो, मन को अभ्यास और वैराग्य से अनुशासित करें, चंचलता को कम करें तो हम आत्मा पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इंद्रियों का भी विवेकपूर्ण संयम रखें। बुरा देखो मत, बुरा सुनो मत, बुरा बोलो मत और बुरा सोचो मत। अपनी आत्मा, अपने कषायों को जीतना बड़ा काम है, हम परम जय पाने की दिशा में आगे बढ़ें।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि एक मार्ग सीधा होता है, जो चलते-चलते अपने गंतव्य तक पहुंचा देता है। दूसरा मार्ग प्रारंभ में सीधा पर अंत में टेढ़ा हो जाता है। तीसरा मार्ग प्रारंभ से अंत तक वक्र ही रहता है। चौथा मार्ग प्रारंभ में टेढ़ा मेढा और अंत में सीधा हो जाता है। मार्ग पर बढ़ने से पहले तीन बातें ध्यान से देखें : मुझे कहां जाना है? किस रास्ते से जाना है? और रास्ते में मेरा मार्गदर्शक कौन है? इन तीन बातों पर विमर्श कर हम मंजिल तक पहुँच सकते हैं। हमारी मंजिल हमारा अपना घर, हमारी
आत्मा में है।
मुंबई प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदन लाल तातेड ने तेरापंथ विश्व भारती के संदर्भ में जानकारी प्रदान की। पूज्यप्रवर के स्वागत में मनोज बाफना, स्वागताध्यक्ष मंजू बाफना, स्थानकवासी समाज से विजयसिंह बोहरा व विनोद बाफना ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ युवक परिषद्, तेरापंथ महिला मंडल एवं तेरापंथ किशोर मंडल ने पृथक पृथक गीत संगान किया। ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।