१६०वें मर्यादा महोत्सव के विविध कार्यक्रम
कूच बिहार, बंगाल
मुनिश्री प्रशांतकुमार जी एवं मुनिश्री कुमुदकुमार जी के सान्निध्य में १६०वें मर्यादा महोत्सव का आयोजन हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रशांतकुमार जी ने कहा- 'पूरी दुनिया में एकमात्र तेरापंथ धर्मसंघ है जो मर्यादाओं का महोत्सव मनाता है। आज एक ओर जहां हर क्षेत्र में अनुशासन और मर्यादा भंग हो रही है, वहीं तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादा पालन में अपनी कटिबद्धता प्रदर्शित करते हुए गरिमापूर्ण ढंग से मर्यादाओं का सम्मान करता है। अनुशासन ही तेरापंथ का मूल मंत्र है। जैन आगमों के अनुसार मुनि चर्या का पालन करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ के साधु-सािध्वयों ने विकास के अनेक नए आयाम खोले हैं। इसका मूल आधार है एक गुरु का अनुशासन। आचार्य भिक्षु आत्म साधना के लिए पूर्णतया समर्पित थे। इस मार्ग में आने वाली बाधाओं, कष्टों को झेलना उन्हें मंजूर था लेकिन सत्य की जो राह पकड़ी उससे हटना स्वीकार नहीं था। आचार्यश्री भिक्षु ने मर्यादाओं को किसी पर थोपा नहीं, सबकी सहर्ष स्वीकृति होने के बाद ही इन मर्यादाओं को संघ में लागू किया। तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा को भी अत्यधिक महत्व दिया गया। शारीरिक दृष्टि से अक्षम अथवा बीमार, वृद्ध साधु साध्वी की सेवा की व्यवस्था यहां बेजोड़ है, जो इस संघ को महानता के शिखर पर पहुंचने वाली है।
मुनि कुमुदकुमार जी ने कहा- अनुशासन और मर्यादा का पालन ही मर्यादा का सबसे बड़ा सम्मान है। तेरापंथ संघ में अनुशासन को सर्वोपरि महत्व दिया गया। लगभग 260 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं बनाई, उनमें आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ और उनका पालन करने को पूरा संघ तत्पर रहता है। तेरापंथ संघ में अहंकार और ममकार विसर्जन की जन्म घुट्टी मिलती है। यही वजह है कि शिष्य-शिष्या बनाने की होड़ से मुक्त होकर तेरापंथ धर्म संघ साधना की गहराई और विकास के शिखरों को छूने में सफल रहा है। जहां अनुशासन और मर्यादा निष्ठा होती है वही शुद्ध साधना हो सकती है। आचार्यश्री का निर्णय एवं उनकी दृष्टि ही सर्वोपरि होते हैं। हाजरी वाचन के पश्चात् दोनों संतों ने खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन राजकुमार बोथरा ने किया। तेरापंथ महिला मंडल के मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। स्वागत वक्तव्य तेरापंथी सभा अध्यक्ष राजेंद्र नौलखा ने दिया। आभार ज्ञापन प्रदीप दुगड़ ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि कुमुदकुमार जी ने किया।