संपत्ति और विपत्ति में रखें एकरूपता : आचार्यश्री महाश्रमण
आमटेम, २ मार्च, २०२४
समत्व के साधक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी आज रायगढ़ जिले के आमटेम गांव पधारे। अणुव्रत अनुशास्ता ने मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में फरमाया कि मनुष्य के भीतर अनेक वृत्तियां हैं। गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ, राग, द्वेष और घृणा जैसी बुरी वृत्तियां तो दूसरी ओर क्षमा, निरहंकारिता, सरलता, संतोष, वीतरागता, अघृणा और प्रमोद भाव जैसी सद्वृत्तियां भी होती हैं।
भीतर की वृत्ति जब उभरती है तब आदमी उस प्रकार की प्रवृत्ति की ओर उद्यत हो सकता है। हम असद् भावों को अस्तित्वहीन बनाने का और सद्भावों को पुष्ट बनाने का प्रयास करें। कभी-कभी मन, वचन और शरीर के स्तर पर असहिष्णुता भी आ सकती है। उसे भी सहन करने का हम प्रयास करें। क्रोध और अहंकार भी जुड़े हुए हैं। यदि हमारा अहंकार चला जाए तो गुस्सा भी रह नहीं पाएगा।
भगवान महावीर ने कितने परिषह, उपसर्ग सहे थे। एक और चंडकौशिक सर्प का उपसर्ग और दूसरी ओर देवेन्द्र द्वारा प्रणमन, अनुकूल और प्रतिकूल दोनों स्थिति में वे सम रहे। आचार्य भिक्षु के जीवन में भी प्रतिकूलता वाली स्थितियां आई थी। सातों सुख किसी को जीवन भर मिले, यह कहना कठिन है पर समता रूपी साता मन में रखने का प्रयत्न अवश्य करें। यह सोचें कि पूर्व कृत पुण्य और पाप कर्म के बंध के कारण अनुकूलता या प्रतिकूलता की स्थिति आई है।
संपत्ति और विपत्ति में महान लोगों के मन की एकरूपता रहनी चाहिये। सदा एक जैसे दिन नहीं रहते, काल का चक्र घूमता रहता है। राजा रामचंद्र जी के जीवन में भी कितनी कठिनाइयां आई थी। हम भी अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों में समता रखने का प्रयास करें। कहा गया है- पुरुष ! अपने पर ही निग्रह करो, दुःख से मुक्त हो जाओगे। अपने आप का, अपनी आत्मा का, दमन करने से संयमित आत्मा सुखी बन जाती है। पूज्य प्रवर के स्वागत में आमटेम गांव के सरपंच श्री लक्ष्मण तांबोली ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।