एकमात्र अध्यात्म दे सकता है त्राण व शरण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

एकमात्र अध्यात्म दे सकता है त्राण व शरण : आचार्यश्री महाश्रमण

अणुव्रत अमृत महोत्सव के त्रिदिवसीय सम्पूर्ति समारोह के प्रथम दिन पहुंचें लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष शिवराज पाटिल

महाड़। १० मार्च, २०२४

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में अणुव्रत िवश्व भारती द्वारा अणुव्रत अमृत महोत्सव के त्रिदिवसीय सम्पूर्ति समारोह का शुभारम्भ आचार्य प्रवर के मंगल मंत्रोच्चार एवं अणुव्रत गीत के संगान के साथ हुआ। आचार्य प्रवर ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि मनुष्य जीवन में बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु से कोई किसी को त्राण-शरण नहीं दे सकता‌। एक मात्र अध्यात्म और धर्म ही ऐसा त्राण दे सकता है िजससे आत्मा इतनी ऊपर उठ जाती है कि उसके बाद न मृत्यु है, न जन्म है और न बीमारी है। अध्यात्म के द्वारा आत्मा परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर लेती है। साधु बन जाना, परमात्म पद पा लेना बहुत ऊंची बात हो सकती है।
आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात किया था। वे तो १२ वर्ष की आयु में ही साधु बन गये थे, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी भी छोटी उम्र में साधु बन गए थे, पर हर कोई तो साधु बन नही सकता। साधु के लिए महाव्रतों की बात निर्दिष्ट है, गृहस्थों के लिए अणुव्रत का मार्ग अच्छी जीवन शैली का उपाय है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत को व्यापक रूप प्रदान किया था कि जैन-अर्जन कोई भी हो, किसी भी धर्म-सम्प्रदाय को मानने या न मानने वाला हो वह भी अणुव्रती बन सकता है। चाहे आस्तिक हो या नास्तिक, नैतिकता, संयम, सद्भावना और अहिंसा को अच्छा मानता हो तो वह अणुव्रती बन सकता है। अच्छे नियमों को स्वीकार करने से व्यक्ति की चेतना अच्छी रह सकती है, जीवन अच्छा बन सकता है।
अणुव्रत का अमृत महोत्सव वर्ष सम्पन्नता की ओर है। अणुव्रत के लिए कितने-कितने लोगों ने श्रम किया, समय दिया है। कितने कार्यकर्ता नींव के पत्थर बने थे, उनका कितना बड़ा योगदान है। आज भी कार्यकर्ता अपना श्रम, शक्ति और समय अणुव्रत को आगे बढ़ाने में लगा रहे हैं। शिवराजजी पाटिल भी अणुव्रत से जुड़े हुए हैं, ऐसे विशिष्ट व्यक्त्वि का कार्यक्रम में उपस्थित होना अपने आप में कार्यक्रम की शोभा बन जाता है। चुनाव सामने हैं, उसमें भी अणुव्रत की प्रेरणा रहे, चुनाव में शुद्धता रहे। जो लोग पूर्व में अणुव्रत से जुड़े हुए थे, उनकी दूसरी, तीसरी पीढ़ी के लोग भी अणुव्रत से जुड़कर यथासंभव योगदान करने का प्रयास करें।
साध्वीवर्या श्री संबुद्धयशाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि यदि हमारे पास जीवन जीने की कला हो तो जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान प्राप्त हो सकता है। जीवन जीने की कला सर्वोत्तम कला है, इसका अर्थ है शान्ति पूर्ण जीवन जीना। भीतर का सुख प्राप्त करने के लिए शान्ति पूर्ण जीवन जीना सीखना होगा। सभी सुख चाहते हैं, इसके लिए हमारे जीवन में सहजता होनी जरूरी है। सहज जीवन जीने के दो सूत्र बताए गए हैं - पहला बात को सामान्य रूप में लेना सीखें, दूसरा हम मान-अपमान में सम रहने का प्रयास करें। मुख्य अतिथि लोकसभा पूर्व अध्यक्ष, अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित श्री शिवराज पाटिल ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं तो यहां आचार्यश्री के विचार सुनने आया हूं। पूर्वाचार्यों की सन्निधि में भी मुझे बार-बार आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अणुव्रत के संबंध में अनेक ग्रंथों का निर्माण हुआ है।
मनुष्य को सुख प्राप्ति के करणीय और अकरणीय कार्यों का उल्लेख उन ग्रंथों से प्राप्त हो सकता है। दुनिया में अनेक धर्म हैं, सारे धर्मों के अंदर ऐसी चीजें बताई गई हैं, जिन्हें समझ कर चलें तो सुख, शांति और प्रगति संभव है। अणुव्रत के विचार से एकता बनी रह सकती है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से अणुव्रत की यात्रा को दर्शाया गया। अणुव्रत समिति मुंबई के सदस्यों ने गीत का संगान किया। अणुविभा सोसायटी के अध्यक्ष अविनाश नाहर, एवं अमृत महोत्सव संयोजक संचय जैन ने अपने विचार व्यक्त किए। सम्मान प्राप्तकर्ताओं की ओर से भीखम चंद कोठारी ने भाव प्रस्तुत किए। मुख्य न्यासी तेजकरण सुराणा, खुशबू सेठिया ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ७५ वर्षों के कार्यों का एल्बम पदाधिकारियों द्वारा पूज्य प्रवर को समर्पित किया गया। इस अवसर पर अणुव्रत के लगभग ५० पूर्व कार्यकर्ताओं का सम्मान अणुव्रत विश्व भारती द्वारा किया गया। सह संयोजक लादूलाल गांधी ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन अणुविभा के महामंत्री भीखम चंद सुराणा एवं मर्यादा कुमार कोठारी ने किया। महाड़ वासियों की ओर से अभिवंदना के क्रम में महाड़ जैन समाज महिला मंडल, महाड़ की बहिन बेटियों ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ किशोर मंडल एवं कन्या मंडल की संयुक्त प्रस्तुति हुई। तेयुप अध्यक्ष विक्रम गांधी एवं गौतम बोहरा ने पूज्य प्रवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए।