ईमानदारी को आदरास्पद और आचारणात्मक स्थान दें : आचार्य श्री महाश्रमण
लोणेर। ७ मार्च २०२४
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी कोंकण यात्रा के अन्तर्गत लोणेर पधारे। मंगल दशना प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि अणुव्रत का पचहतरवां वर्ष चल रहा है उसी संदर्भ में यह अणुव्रत यात्रा भी हो रही है। भगवान महावीर से जुड़ा यह जैन शासन है। जैन वांगम्य में महाव्रत और अणुव्रत की बात बताई गई है। साधुओं के लिए पांच महाव्रत पालनीय होते हैं, तो गृहस्थों के लिए अणुव्रत समाचरणीय होते हैं। अणुव्रत के दो स्वरूप हैं एक जैन श्रावकों के लिए बारह व्रतों के रूप में, दूसरा आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन के रूप में। आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत को व्यापक रूप दिया, अणुव्रत की अपनी आचार संहिता के नियम हैं, इसकी आचार संहिता को किसी भी धर्म का, सम्प्रदाय का व्यक्ति स्वीकार कर सकता है।
सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति - इस सूत्रत्रयी में अणुव्रत सार आ जाता है। कोई भी इनको स्वीकार कर गुडमैन बन सकता है। ईमानदारी के दो आयाम हैं- झूठ नही बोलना, चोरी नहीं करना। वृत्त और वित्त दो शब्द आते हैं। वृत्त का अर्थ है चारित्र–आचरण और वित्त अर्थात् पैसा। वित्त तो आता है, चला जाता है। हमें वृत्त की, चरित्र की प्रयत्नपूर्वक सुरक्षा करनी चाहिये। जीवन में ईमानदारी के भाव को पुष्ट रखना चाहिए। दुकानदार ईमानदार होना चाहिये। झूठ बोलने से शुचिता में कमी आ सकती है। ईमानदारी तो व्यापक है, पैसे की बात हो, कोई लेन-देन हो, न्यायालय का काम हो, हर जगह ईमानदारी रहनी चाहिए। झूठ और कपट का जोड़ा है तो सरलता और सच्चाई का जोड़ा है। हम अपने जीवन में ईमानदारी को आदर देने का और आचरण में लाने का प्रयास करें। ईमानदारी से आत्मा निर्मल रह सकती है। गृहस्थ कपट से बचकर, साफ सुथरा व्यवहार रखने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर के स्वागत में प्रदीप गांधी ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।