परम शांति के लिए अध्यात्म के अलावा और कोई मार्ग नहीं : आचार्य श्री महाश्रमण
वहूर। ८ मार्च, २०२४
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी कोंकण के वहूर क्षेत्र में पधारे। उपस्थित परिषद् को पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए महायोगी ने फरमाया कि मोक्ष की स्थिति परम स्थिति होती है। आत्मा संसार में जन्म-मरण की परम्परा में भ्रमण करती रहती है। एक बार जब मोक्षावस्था प्राप्त हो जाती है तब वह आत्मा पुनः जन्म-मरण नहीं करती। हमेशा के लिए वह जन्म मरण से मुक्त हो जाती है। प्रश्न हो सकता है कि मोक्ष इतना ऊंचा, परम सौख्य वाला स्थान है, वह मोक्ष की अवस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है? मोक्ष का मार्ग ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का मार्ग है, इस मार्ग पर चलने से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
ज्ञान से भावों को, पदार्थों को आदमी जानता है। दर्शन से श्रद्धा होती है, चारित्र से कर्म के आने का रास्ता निरुद्ध होता है और पहले से जो कर्म बंधा हुआ है, उनकी शुद्धि तप के द्वारा होती है। ज्ञान के बिना जीवन में अन्धकार है। ज्ञान मिलने से जीवन में प्रकाश मिल जाता है। देखने के लिए चार चीजों के आवश्यकता है- नेत्र भी हो, जिसको देखना है वह दृश्य भी हो, सहायक के रूप में प्रकाश भी हो और पुरुषार्थ के रूप में देखने की प्रवृत्ति, चेष्टा भी हो। इनसे किसी चीज का सम्यक दर्शन हो सकता है। ज्ञान एक प्रवृत्ति है अध्ययन करना है, तो विद्यार्थी, शिक्षक, पुस्तक, विद्यालय आदि भी चाहिए। विद्यालय ज्ञान ग्रहण कराने में सहायक है।
हम अपने जीवन में अध्यात्म विद्या, तत्वज्ञान भी सीखने का प्रयास करें। पदार्थों से परम शांति नहीं मिलती है। अध्यात्म से परम शांति मिल सकती है। परम शांति पाना है, मोक्ष पाना है तो अध्यात्म का, धर्म का, ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप के मार्ग के अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। आचार्य भी ज्ञान के नियंता होते हैं, तीर्थकर के प्रतिनिधि होते है। आचार्य भी तारने वाले होते हैं। हम गुरुओं से ज्ञान ग्रहण कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। पूज्यवर के स्वागत में जिला परिषद सदस्य जीतू सावंत एवं लादूलाल गांधी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।