शासन रा कीर्तिधर जी

शासन रा कीर्तिधर जी

शासनश्री! सतिवर प्यारा, सोमलता जी हा न्यारा।
तोड़ तड़ाकै नेह कियां चाल्या प्यारा सतीवर जी।
शासन रा कीर्तिधर जी,
यादां थांरी आवै जी, जीवड़ों अकुलावै जी।।
वत्सलता री मूरत हा, ममता री प्रतिमूरत हा,
धोबां भर-भर लाड़ घणो वख्शाया प्यारा सतीवर जी।।
प्रवचन अमृत रो झरणो, पीकर भव सागर तरणो,
कर्मां री थे झीणी रैस बताया प्यारा सतीवर जी।।
कष्टां स्यूं क्यूं घबराणो, असाता में मुस्काणो,
हंसता-हंसता कर्मां नै थे काट्या प्यारा सतीवरजी।।
श्वासां री थमगी डोरी, बात आ तो नाजोरी,
काल बैरी क्यूं निजर कड़ी यूं करली प्यारा सतीवर जी।।
कांई खता हुई म्हां स्यूं , हाथ जोड़ पूछां थांस्यू,
एकर तो भूलां म्हांरी बताओ प्यारा सतीवर जी।।
तीनूं गुरु री महर मिली, सदा रूंआली रही खिली,
वरदहस्त री छत्र छांव थे पाया प्यारा सतीवर जी।।
उग्रविहारी! कमल मुनि, तपोमूर्ति है महाधुनी,
श्रुतधर वीर पा हृदय कमल विकसायो प्यारा सतीवर जी।
संथारो करवा दायित्व निभाया, श्रुतधर मुनिवर जी ।।
शासन रा कीर्तिधरजी, साचो रतन पायो जी,
केसर सौरभ आवै जी।
यादां थांरी आवैजी, जीवड़ो अकुलावै जी।।
लय: कल्पतरू रा बीज फल्या