जीवन को संवारा

जीवन को संवारा

शासनश्रीजी सोमलताजी ने पचखा संथारा,
जीवन को संवारा।।
छोटी वय में दीक्षित होकर, संघ चमन में आए,
गंगाणे का बैद परिकर, अपने भाग्य सराए।
रतनलालजी केसर देवी, के कुल को उजारा।।
गुरु तुलसी व शासन माता, का सिर पर था साया,
अनुज सहोदर कमल मुनि का, उपकार नहीं विसराया।
साध्वी प्रमुखा लाडांजी से, संयम को स्वीकारा।।
कीर्ति शांति पूनम को भी योग मिला संग रहना,
जबरदस्त कर्मों का उदय, हंसते-हंसते सहना।
शकुंतला, संचित, जागृत, रक्षित का मिला सहारा।।
अंतिम वय में संथारा कर लक्षित मंजिल पाई,
कीर्ति शांति पूनम श्रेष्ठा देते तुम्हें बधाई।
मोहमयी मुम्बई नगरी में गुरु महाश्रमणजी बरतारा।।
शिवरात्री के दिन चार तीर्थ का, लगा नव्य नजारा।।
लय: संयममय जीवन