जीवन में हो विशेषताओं को विकसित करने का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी की पुण्यतिथि एवं साध्वी पानकुमारी जी 'द्वितीय' की स्मृित सभा का आयोजन
पिंपरी चिंचवड़ प्रवास के दूसरे दिन एलप्रो इंटरनेशनल स्कूल के प्रांगण में तेरापंथ सरताज युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करवाते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में अनेक विशेषताएं हो सकती हैं तो अनेक कमियां भी हो सकती हैं। किसी आदमी में विशेषताओं का पलड़ा भारी होता है और कमियों का पलड़ा हल्का होता है। किसी में विपरीत भी हो सकता है। किसी आदमी में पांच अच्छाइयां हैं पर एक बुराई ऐसी आ जाती है कि वे पांच विशेषताऐं गौण जाती हैं। कभी-कभी पांच छोटी-छोटी कमियां होने पर भी एक विशेषता अच्छी उभरती है कि वे पांच कमियां दब जाती हैं। हम अपने जीवन में अच्छी विशेषताओं को उभारने का, विकसित करने का प्रयास करें। यह एक लक्ष्य बने कि मुझे कमियों को कम करना है और अच्छाइयों को विकसित करना है। लक्ष्य के अनुरूप हमारा प्रयास चलता रहे तो व्यक्ति बहुत आगे बढ़ सकता है।
विद्यालयों में कई बार अच्छे सूक्त लिखे मिलते हैं, उनको बार-बार पढ़ा जाता है, तो दिमाग में अच्छा प्रभाव पड़ सकता है, अच्छी दृष्टि प्राप्त हो सकती है। दृष्टि अच्छी हो जाए तो जीवन की सृष्टि भी अच्छी हो सकती है। हम अपने जीवन में अच्छाइयों को उभारने का प्रयास करें। व्यक्ति के जीवन ने कोई खासियत होनी चाहिए। यह सोचें कि जिस संगठन में मैं रहता हूं वहां मेरी उपयोगिता होनी चाहिए। जीवन में किसी विषय में विशिष्टता आ जाये तो अच्छी बात हो सकती है। उससे दूसरों को भी लाभ मिल सकता है। अपने-अपने क्षेत्रों में गृहस्थों में विशेषता हो, साधु-साध्वियों व समणियों में भी अपनी-अपनी विशिष्टता हो सकती है।
बैंगलोर के श्रावक विजयराजजी मरोठी तत्त्वज्ञान में विशेषज्ञ थे। अनेक चारित्रात्माओं एवं समणियों ने उनसे तत्त्वज्ञान के संदर्भ में समाधान प्राप्त करने का प्रयास किया होगा। हमारे दूसरे दशक के जो चारित्रात्माएं हैं, वे भी किसी न किसी क्षेत्र में विशेषज्ञ बनने का प्रयास करें। सेवा, साहित्य लेखन, प्रबंधन कौशल, संयोजन, प्रस्तुति करण आदि अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का सम्यक उपयोग हो, उनमें विशेषज्ञ बनने का प्रयास करें। जहां जो अच्छी चीज मिले, उसे ग्रहण करते जाएं, ग्राहक बन कर रहें। जगह-जगह हमारी यात्राएं होती हैं, वहां से कुछ न कुछ सीखने का, ग्रहण करने का प्रयास करें। चारित्रात्माएं हो या गृहस्थ हो सभी अपने-अपने क्षेत्र में दक्षता ग्रहण करें। विशेषता का, दक्षता का विकास हमारे जीवन में हो।
चतुर्दशी के अवसर पर पूज्य प्रवर ने हाजरी का वाचन कराते हुए मर्यादाओं के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा प्रदान करवायी। शासनमाता साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी कनकप्रभाजी के द्वितीय वार्षिक पुण्य तिथि के अवसर पर जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित व 'शासनगौरव' साध्वी कल्पलता जी द्वारा संकलित ग्रन्थ 'सादर स्मरण शासन माता' पूज्य प्रवर के श्री चरणों में लोकार्पित किया गया।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आज फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी है। आज के दिन, दो वर्ष पहले, दिल्ली में हमारे धर्मसंघ की आठवीं साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का महाप्रस्थान हो गया था। उन्होंने जितने लंबे समय तक साध्वीप्रमुखा पद पर सेवा दी वह एक कीर्तिमान है। गुरुदेव तुलसी ने उन्हें छोटी उम्र में ही साध्वीप्रमुखा पद पर स्थापित कर दिया था। उनको महाश्रमणी व संघ महानिदेशिका पद पर भी प्रतिष्ठित
किया था। साध्वी समुदाय की देख-रेख का काम तो वे करती ही थी, साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी प्रतिभा थी। संस्कृत का भी उनका अच्छा अध्ययन था, वे विदुषी थी, उनमें अनेक विशेषताएं थी। उन्होंने धर्म संघ में अच्छी सेवाएं दी। आचार्य महाप्रज्ञ जी उनसे 21 वर्ष बड़े थे और मैं उनसे 21 वर्ष छोटा था। वे एक असाधारण साध्वीप्रमुखा थी। आज उनकी दूसरी वार्षिकी है। उनके जीवन से हम प्रेरणा प्राप्त करें, उनकी आत्मा खूब विकास करे।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने शासनमाता को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मैं जब शासनमाता के जीवन को देखती हूं तो मुझे उनमें लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा ये तीनों रूप दिखाई देते हैं। उनमें ज्ञान की सम्पदा थी, आध्यात्मिक वैभव था और उनके पास बाह्य और आन्तरिक शक्ति भी थी। उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग सृजन शीलता में, लेखन और वक्तृत्व में, साहित्य सृजन में, जनता की सार-संभाल में, महिलाओं को जगाने में और साध्वियों को तैयार करने में किया। उनके द्वारा बताए गए जीवन रहस्यों से हम भी हमारे जीवन में आगे बढ़ते रहें।
साध्वीवर्याजी संबुद्धयशा जी ने कहा कि धर्मसंघ की अष्टम् साध्वीप्रमुखा को मैं अर्जुन के रूप में देखती हूं। उन्हें गुरुदेव श्री तुलसी की विराट कृपा प्राप्त हुई थी। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भी उन्हें असाधारण साध्वीप्रमुखा एवं शासन माता का अलंकरण प्रदान किया था। किसी साध्वी प्रमुखा का अमृत महोत्सव मनाना, उनके देवलोक गमन के पश्चात उनके लिए कोई मंत्र देना ये भी अपने आप में इतिहास की विरल घटनाएं थी। वे दिव्य विभूति थी। उनकी शिक्षाएं अपनाकर हम भी संघ में योगभूत बनें।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में साध्वियों की व्यवस्था के संदर्भ में आचार्यों को साध्वीप्रमुखा से बड़ी सहायता मिलती है। अष्टम् साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी एक विलक्षण साध्वी प्रमुखा थी, जिन्हें तीन-तीन आचार्यों का नेतृत्व मिला। न केवल साध्वी समुदाय को, श्रावक-श्राविकाओं को भी उन्होंने अच्छी तरह संभाला था। साधु समुदाय को भी उनसे प्रेरणा प्राप्त होती रहती थी। साध्वी वृंद ने 'शासनमाता के चरणों में हम श्रद्धांजलि अर्पित करते' गीत का सुमधुर सामूहिक संगान किया। साध्वी मंगलप्रज्ञा जी ने भी शासनमाता साध्वी प्रमुखा श्री के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम से पूर्व पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में 'शासनश्री' साध्वी पानकुमारीजी 'द्वितीय' की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। आचार्यप्रवर ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आदमी जन्म लेता है, जीवन जीता है और एक दिन कालधर्म को भी सम्प्राप्त हो जाता है। केवल मनुष्य ही नहीं हर प्राणी के साथ ऐसा होता है। विशेष बात यह होती है कि प्राणी जीवन किस प्रकार का जीता है। मनुष्य भव प्राप्त कर साधुपन प्राप्त करना और अंतिम श्वास तक उसे निभा देना और बड़ी बात हो जाती है। साध्वी पानकुमारीजी 'द्वितीय' एक वयोवृद्धा साध्वी थी। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के द्वारा वे दीक्षित हुयी थी। आचार्यप्रवर ने साध्वीश्री का परिचय देते हुए सम्यक्त्व युक्त चारित्र के महत्त्व को उजागर किया एवं मध्यस्थ भावना के प्रयोग के रूप में चार लोगस्स का ध्यान करवाया।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी ने कहा कि साध्वी पानकुमारी जी एक सौभाग्यशाली साध्वी थी जिन्हें पांच साध्वी प्रमुखाओं के दर्शन करने का योग प्राप्त हुआ। वे पंचाचार की साधना करने वाली, स्वाध्याय प्रेमी साध्वी थी। आगम के प्रति, तत्त्व के प्रति उनके मन में गहरी निष्ठा थी, ज्ञान के प्रति अभिरुचि थी। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि 'शासनश्री' साध्वी पानकुमारी जी 'द्वितीय' सरलमना, स्वाध्याय शीला, जागरूक साध्वी थी। उनकी आत्मा उत्तरोत्तर आगे बढ़ते हुए मोक्षश्री का वरण करें। साध्वी गौरवयशा जी, साध्वी रुचिरप्रभा जी एवं मुनि हिमकुमार जी ने भी साध्वी पानकुमारीजी के प्रति अपने उद्गार व्यक्त किये।
आचार्य प्रवर के स्वागत में ज्ञानशाला के विद्यार्थियों ने सुंदर प्रस्तुति दी। एलप्रो स्कूल की प्रिंसिपल अमृता बोहरा, स्थानीय तेयुप अध्यक्ष अमित कांकरिया, टीपीएफ अध्यक्ष दर्शन लोढ़ा, महिला मंडल अध्यक्षा शालिनी सिंघी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ कन्या मंडल की सदस्याओं ने अपनी भक्ति परक प्रस्तुति दी। डॉ. कल्याण गंगवार ने अपनी पुस्तक 'सुखी जीवन का आधार-शाकाहार' पूज्य चरणों में लोकार्पित कर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।