सुखी बनने के लिए सुकुमारता, कामना, द्वेष और राग को छोड़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुखी बनने के लिए सुकुमारता, कामना, द्वेष और राग को छोड़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी होली चातुर्मास एवं चार दिवसीय प्रवास हेतु पिंपरी चिंचवड़ पधारे। संयम सुमेरू ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी सुखी जीवन जीना चाहता है। कई बार सुख की चाह होते हुए भी आदमी की भेंट दु:खों से हो जाती है। हमारी दुनिया में शारीरिक दु:ख जैसे बुढ़ापा, बीमारी आदि भी होते हैं और मानसिक दु:ख भी होते हैं। सारे दु:खों के मूल में कार्मण शरीर और मोहनीय कर्म है। शास्त्रकार ने संसार में सुखी रहने के कुछ निर्देश दिए हैं।
पहली बात है - अपने आप को तपाओ, सुकुमारता को छोड़ो। कहीं सुविधा न मिले तो कठोरता में रहने का भी अभ्यास होना चाहिए। कठिनाई से डरकर दूर नहीं भागना चाहिए। कठिनाई का सामना करने से वह दूर भी हो सकती है। परिस्थिति को मन से स्वीकार कर लिया जाए तो उसके पश्चात परेशानी नहीं होती। दूसरी बात है- कामनाओं को छोड़ो। भौतिक चाह पूरी नहीं होती तो वह भी दुःख का कारण बन सकती है। मन में संतोष रखें, अवांछनीय रूप में कामनाएं नहीं होनी चाहिए। भीतर में लालसा होती है तो दु:ख का कारण बन सकती है। तीसरी बात है- द्वेष को छिन्न करो। दूसरे को सुखी देखकर हमें दु:खी नहीं बनना चाहिए और दूसरे को दु:खी देखकर हमें सुखी नहीं बनना चाहिए। मन में प्रमोद भाव रहे, ईर्ष्या का भाव नहीं रखना चाहिए। दूसरों की विशेषताओं को जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
कहा गया है- दूसरे में परमाणु जितना भी गुण है उसको भी प्रमोद भावना से पर्वत जितना रूप देकर मन में प्रसन्नता का अनुभव किया जा सकता है। हम पर्वत जितना रूप न दे सकें पर जितना है उतना स्वीकार करने का प्रयास करें। चौथी बात बताई गयी- राग भाव को दूर करो। साधु कहीं ममत्व न करे। गृहस्थ भी अपने जीवन में इन बातों को अपनाने का प्रयास करें। इन सब बातों को अपनाने से हम संसार में सुखी जीवन जी सकते हैं। 'मैं नहीं हम' सब बढ़िया बनें, सुखी बनें। विकास का आकाश सबके लिए खुला है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि तेरापंथ धर्मसंघ एक नेतृत्व वाला धर्मसंघ है। हमारी आस्था के केंद्र आचार्य ही रहते हैं। आचार्य के इंगित को हर व्यक्ति स्वीकार करने का और उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न करता है। आचार्य का इंगित सबके िलए मननीय और चिंतनीय होता है। आचार्य का व्यक्तित्व अध्यात्म सम्पन्न व्यक्तित्व होता है। एक प्रकार का व्यक्तित्व 'प्रो-एक्टिव पर्सनालिटी' का होता है जो व्यक्ति की समस्याओं की ओर ध्यान देकर उनके समाधान करने का प्रयास करता है। दूसरा 'पुल पर्सनालिटी' वाला व्यक्तित्व दूसरों को अपनी ओर खींचता है। आचार्य प्रवर के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण है। आचार्यप्रवर में प्रो एक्टिव पर्सनालिटी भी है तो पुल पर्सनालिटी भी है। पूज्यप्रवर के स्वागत में सभाध्यक्ष प्रकाश गांधी, एलप्रो इंटरनेशनल स्कूल से राजेंद्र डाबड़ीवाल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ युवक परिषद् एवं तेरापंथ महिला मंडल ने संयुक्त रूप से स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।