जीवनरूपी महल में हो ज्ञान का प्रकाश और संस्कारों की सौरभ : आचार्य श्री महाश्रमण
संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पहाड़ियों के उतार-चढ़ाव को पार करते हुए आज ताम्हिनी पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पावन आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्व है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चे दूर-दूर तक भारत में और भारत के बाहर भी चले जाते हैं। समाज में ज्ञान के प्रति जागरूकता है। शिक्षा ज्ञान का विकास कराती है। विद्यालय-महाविद्यालय ज्ञान के केन्द्र होते हैं, जहां अध्यापक शिक्षा देते है। यह शिक्षा संस्कार युक्त हो, विद्यार्थियों में नैतिकता, अहिंसा, ईमानदारी, नशामुक्ति आदि के अच्छे संस्कार आने चाहिए।
ज्ञान एक प्रकार का प्रकाश है तो संस्कार एक प्रकार की सौरभ है। विद्यार्थियों में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी आ जाएं तो वे विद्यार्थी अपनी आत्मा को अच्छी बनाने वाले हो सकते हैं, परिवार, समाज और राष्ट्र की अच्छी सेवा करने वाले हो सकते हैं। शिक्षक विद्यार्थी के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। शिक्षक में अच्छे संस्कार हैं तो उनका जीवन एक अच्छा संदेश देने वाला हो सकता है। उम्र में बड़ा होना बड़ी बात नहीं है, ज्ञान और संस्कार में बड़ा होना महत्वपूर्ण है। हमें जीवनरूपी महल को ज्ञान के प्रकाश और संस्कारों की सौरभ से भरना चाहिये। गलतियों को छोड़ने का और अच्छाईयों को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिये। जिससे इहलोक और परलोक का हित हो, सुगति प्राप्त हो सके, उसके लिए बहुश्रुत की पर्युपासना करनी चाहिये। त्यागी-संयमी, ज्ञानी साधु से अच्छा सद्ज्ञान मिल सकता है। सद्ज्ञान से आदमी को कल्याण का मार्ग प्राप्त हो सकता है। विद्यार्थी सन्मार्ग पर चलें और अच्छे बनें यह काम्य है।