रम्या थे भैक्षव शासन में

रम्या थे भैक्षव शासन में

शासन माता थे गण में,
साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा रो गौरव जन जन में,
पुण्य पुंज! पौरुष प्रधान, तपोधन जीवन में,
संघ गगन में ध्रुव तारो ज्यूं , चमक्या शासन में।।
विनय समर्पण री प्रतिमूर्ति, गुरु इंगित पहचान।
पल-पल दृष्टि आराधी, अंतिम तक थारां प्राण।
विदा ली गुरुवर चरणन में।।
घोर वेदना में समभावी, वीर वृति नै धार।
समता रो पाठ पढ़ायो संघ नै, है अनंत उपकार ।
शांत रस थारे कण-कण में।।
नयणां स्यूं वात्सल्य वृष्टि, अमृत रस वचन-वचन में।
निर्माण कर्यो थे चार तीर्थ रो, खप्या-तप्या गण में।
रम्या थे भैक्षव शासन में।।
आत्मसात हो ज्ञान, ज्योतिर्मय जीवन साक्षात।
बलिदानां री अमर कहानी, बणगी स्वर्णिम ख्यात।
विजयी थे जीवन रे रण में।।
प्रलंब यात्रा साथ रह्या थे, अनुभव रा भंडार।
आचार्यां रा प्रतिनिधि हा, विशाल भुजा आधार।
मिल्यो सम्बल गुरु चिंतन में।।
असाधारण साध्वीप्रमुखा, महाश्रमणी विख्यात।
तेरापंथ री अजब विभूति, थे ममता मयी मात।
नहीं भूला म्हें जीवन में।।
ज्ञानाराधना खूब करी, संपादन काव्य सुलेख।
सक्षमता प्रत्येक कार्य में, अथाह शक्ति विशेष।
लेखनी हारै वरणन में।।
वक्ता थाकै वरणन मैं ।।
लय : तावड़ा धीमो पड़ जा।