युग-युग मां का अभिनन्दन

युग-युग मां का अभिनन्दन

शासन माता स्मृति पावन है।
उमड़ा श्रद्वा का सावन है।
भैक्षव शासन मनभावन है।।
चन्देरी की वह धन्य धरा, रविरथ मानो रवि घर उतरा।
ज्योतित जिससे गण आंगन है।।
वह नगर केलवा सौभागी।
संचित पुण्याई थी जागी।
तुलसी कर संयम जीवन है।।
उद्गम स्थल शुभ तेरापंथ का।
गतिमान चक्र जीवन रथ का।
पाया मुक्ति का स्पंदन है।।
सार्थक तुमने सन्यास किया।
गुरु चरणों में अभ्यास किया।
क्षितितल से शिखरारोहण है।।
गंगा सा गंगाशहर बना।
जिसने भी तेरा नाम सुना।
विस्मित स्मित जन-जन का मन है।
था नाम अपरिचित कनक प्रभा।
सुनकर चौकन्नी हुई सभा।
शोभित तुम से यह शासन है।।
अष्टम् प्रमुखा पद आसन है।।
दायित्व बखूबी वहन किया।
कितना कुछ तुमने सहन किया।
साक्षी स्वयमेव प्रशासन है।।
वात्सल्य अमीरस बरसाया।
श्रमणी गण उपवन सरसाया।
आभारी सबका कण-कण है।।
महिला जागृति पथ दरसाया।
है संघ चतुर्विध हरसाया।
पा महाश्रमणी पथदर्शन है।।
हर धड़कन में तुम जीवित हो।
दिल दर्पण में प्रतिबिम्बित हो।
अर्पित भावों का चंदन है।।
लो ‘संघप्रभा’ का शत वन्दन।
मेहरबां खुद नेमां नन्दन।।
वात्सल्य पीठ पर स्पन्दन है।
युग-युग मां का अभिनन्दन है।।
लय: जय बोलो संघ सितारे की