'पान' सतीवर का उपकार
जिनकी प्रेरक वाणी से, जागे संयम संस्कार।
'पान' सतीवर का उपकार।
िजनके पावन पावस में वैराग्य बना साकार।
'पान' सतीवर का उपकार।।
गण गणपति से गहरी प्रीति, मुखरित रहती गुरु गुणगीति।
कहती गुरुवर है जीवनधन, तेरापथ यह है नन्दनवन।
जन्मों की पुण्याई जागी, पाया गण मंदार।।
घो. चि. पू. लि. चारों समझाती, कण्ठीकरण कला सिखलाती।
बातें उनको नहीं सुहाती, करने पर झट आंख दिखाती।
बातेरी की सदा बिगड़ती, सीख बनी सुखकार।।
ज्ञान ध्यान में रही निरंतर, तत्त्वज्ञान गहराई भीतर।
सहज सुघड़ व्यवहार कुशलता, अद्भुत देखी समता-क्षमता।
वृद्धावस्था बनी शुभंकर पा आगम आधार।।
संयम रक्षा का प्रण अविचल, झुका न पाई तन की हलचल।
मनोबली वे आत्मबली थी, लाड़-प्यार में भले पली थी।
श्रमलीला स्वाध्याय प्रेमिका निर्मल पंचाचार।।
वैरागी भाई बहिनों को खूब किया तैयार।।
स्मृतियों के दर्पण में वह मूरत लेती आकार।।
लय : कितना बदल गया इंसान