सतयुग की सती प्रतीत होती थी साध्वी श्री पानकुमारीजी 'द्वितीय'

सतयुग की सती प्रतीत होती थी साध्वी श्री पानकुमारीजी 'द्वितीय'

पहली नजर में ही जिनके भीतर सतयुग की सती के दर्शन प्रतीत होते थे ऐसी साध्वी थी शासनश्री साध्वी पानकुमारी जी 'द्वितीय'। जिनकी उपासना में आने वाला हर व्यक्ति शांति का अनुभव करता था। मैं अपना सौभाग्य ही मानूंगा कि मुझे बचपन से ही अनेकों बार उनके दर्शनों का लाभ मिला। दीक्षा के बाद भी जब भी मिलना होता तब अनेक शिक्षाएं फरमाते थे। अंतिम बार उनकी सेवा-उपासना का अवसर मुझे सन 2014 में गंगाशहर में मिला था। तब शिक्षा प्रदान करते आपने फरमाया था- 'हमारे संयम की चादर पवित्र बनी रहनी चाहिए। गुरु दृष्टि की अखंड आराधना करनी है। मंत्री मुनिश्री की सेवा खूब करना है, उनसे ज्ञान प्राप्त करना है। उनका आशीर्वाद तुम्हें जीवनभर आगे बढ़ायेगा।'
'शासनश्री' साध्वी पानकुमारी जी की उपासना के सौभाग्य में मुख्य निमित्त थे मेरे संसारपक्षीय बुआ दादी साध्वी मूलांजी व बुआ साध्वी मंगलयशाजी। साध्वी मूलांजी का उनके साथ लगभग 72 वर्षों का साहचर्य रहा। कहा जाता था कि एक आत्मा दो देह हैं। साध्वी मंगलयशाजी को भी अंतिम समय तक उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ है। 'शासनश्री' की सेवा में अभी कुछ समय पूर्व एक भाई सूरत से गया था तब आपने फरमाया था कि अनंत मुनि को कहना कि साध्वी मंगलयशाजी तो मेरा आयुष्य बढ़ा रही है, अग्लान भाव से मेरी सेवा करती है। पिछले दो वर्षों में मेरी संसार पक्षीय ज्येष्ठ भगिनी साध्वी मुक्तिश्री को भी उनकी सेवा व सान्निध्य प्राप्त हो रहा था। अन्य सहवर्ती साध्वियां साध्वी अपूर्वयशाजी, साध्वी भास्करप्रभाजी, साध्वी सौम्यप्रभाजी को भी अंतिम सेवा का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
अभी-अभी गुरु निर्देश से मुझे मुंबई की ओर विहार करना था तब भाई द्वारा पूछने पर उन्होंने अपनी अनुभव प्रणव सिद्धवाणी से फरमाया था कि अमुक-अुमक जप करके यह कार्य करके वहां से प्रस्थान करना सब प्रकार से निर्विघ्नता रहेगी। मैंने वैसे ही किया और मुझे अनुकूलता ही अनुकूलता प्राप्त होती रही। जब गुरुदेव ने मुझे कच्छ की तरफ विहार का निर्देश प्रदान करवाया तब भी मुझे समाचार मिले कि 'शासनश्री' साध्वी पानकुमारीजी ने मेरे लिए फरमाया है कि गुरुदेव ने बड़ी कृपा करवाई है। गुरुदेव अगले वर्ष मर्यादा महोत्सव करने कच्छ-भुज की भूमि पर पधार रहे हैं। बड़े अच्छे से कार्य करना है। मंत्री मुनिश्री के नाम को आगे बढ़ाना है। अपनी मातृभूमि का ऋण चुकाना है। मुझ पर सतत् स्नेह बरसाने वाली 'शासनश्री' साध्वी पानकुमारीजी 'द्वितीय' की शिक्षाओं को जीवन में अपनाऊं और उनके जीवन के गुण सहजता, सरलता, पवित्रता आदि मेरे में भी अवतरित हो, यह स्वयं के लिए भावना भाता हूँ। उनकी आत्मा शीघ्र अपने मंजिल को प्राप्त करे, यह मंगलकामना करता हूं।