आध्यात्मिक मिलन से हुआ गुणोत्कीर्तन

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आध्यात्मिक मिलन से हुआ गुणोत्कीर्तन

'उग्रविहारी तपोमूर्ति' मुनि कमलकुमारजी एवं 'शासनश्री' साध्वी कंचनप्रभाजी का आध्यात्मिक मिलन हुआ। मुनिश्री ने कहा - 'शासनश्री' साध्वी कंचनप्रभाजी द्वारा मेरी संसारपक्षीय सहोदरी साध्वी सोमलताजी को दीक्षा के दिन से ही कुशल मार्गदर्शन मिला, साध्वी जीवन के गहरे संस्कार प्राप्त हुए, उसी का परिणाम था कि साध्वी सोमलताजी भी साधना में उत्तरोत्तर बढ़ती हुई 'शासनश्री' बनी। उन्होंने भी आपकी तरह सुंदूर प्रांतों की सफल यात्राएं कर धर्मशासन की गौरव वृद्धि की। मुनिश्री ने गुरुदेव श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी, आचार्यश्री महाश्रमणजी, साध्वीप्रमुखा लाडांजी, शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी और साध्वी वर्याजी की विशेष कृपा का उल्लेख किया।
'शासनश्री' साध्वी कंचनप्रभाजी ने कहा कि साध्वी सोमलताजी साध्वीप्रमुखा लाडांजी के कर कमलों से दीक्षित होने वाली एकमात्र साध्वी थी। साध्वी सोमलजाजी ने दीक्षित होकर अच्छी अर्हता प्राप्त की, प्रवचनकार, गीतकार, रचनाकार साध्वी बनी। उनकी मिलनसारिता, गुण ग्राहकता सदैव स्मृति पटल पर रहेगी। जीवन के अंतिम समय में गुरु दर्शन ही नहीं, गुरुदेव के साथ चतुर्मास का योग भी मिल गया, अनेक साधु साध्वियों से मिलना हो गया। अंत में अपने सहोदर मुनि से संथारा करके देह का परित्याग किया। उनकी सहयोगी साध्वियों ने उनकी हर तरह से सेवा कर उन्हें समाधि पहुंचाई, देखकर-सुनकर प्रसन्नता हुई।