जीती बाजी जीवन में

जीती बाजी जीवन में

जीती बाजी जीवन में, संयम के समरागंण में।
जूझे कर्मों से हंसते-हंसते, सोमलता जी।।
रतनलाल जी तात तुम्हारे, माताजी केशर बाई।
दो बहिनों में आप अग्रजा, छक्कं छक्का थे भाई।
गंगाणे के गौर थे, बैद कुल की सौरभ थे।।
छोटी वय में बन वैरागण, नश्वरता को जान लिया।
ज्ञान, ध्यान, चर्चा, वार्ता कर, संयम लेना ठान लिया।
पा. शि. संस्था में शिक्षा, लाड़ सती से ली दीक्षा।।
गुरुकुल वास रहा सुखकारी, वे पल थे उपकारी जी।
शासन माता के सोमांजी, बन गए बहिर्विहारी जी।
देश प्रदेशों में घूमें, सुन प्रवचन जनता झूमें।।
खुश मिजाज व्यवहार कुशलता, कार्य कुशलता अलबेली।
कमल मुनि की कोमल भगिनी, स्पष्टवादिता कार्यशैली।
अंतिम सेवा वरदाई, नंदनवन में सुखदाई।।
गुरु करुणा के सागर में कर, स्नान स्वयं को शुद्ध किया।
महानगरी में कर अनशन, आत्मा को परम विशुद्ध किया।
भ्राता का शुभ योग मिला, सहगामी सहयोग मिला।।
लय: मेहंदी रची थांरै हाथां में