स्वच्छ व्यवहार ने मेरे दिल में एक बहुत बड़ा स्थान बनाया
'शासनश्री' साध्वीश्री सोमलताजी मेरे अग्रगण्य, उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमारजी स्वामी की संसारपक्षीय सहोदरी थी। मेरा प्रथम बार उनसे मिलन कालवा देवी स्कूल मुंबई में हुआ। उनके विनम्र, सरल, स्वच्छ व्यवहार ने मेरे दिल में एक बहुत बड़ा स्थान बनाया। कांदीवली चतुर्मास में साध्वीश्री की गोल्डन जुबली पर मैंने प्रथम बार ९ दिन की तपस्या की उस समय साध्वीश्री ने सरस और हृदयग्राही गीत बनाकर मुझ में एक ऐसी शक्ति का संचार किया कि मात्र ७ वर्षों में १९ मासखमण हो गए। इस वर्ष हमने दिल्ली चातुर्मास पूर्ण कर पूज्य प्रवर के वाशी में दर्शन किये। पूज्य प्रवर ने हमें उसी दिन साध्वीश्री को सेवा दर्शन पाथेय देने भिजवा दिया। लंबा रास्ता होते हुए भी हम लोग उसी दिन साध्वी श्री के लिए दादर सकुशल पहुंच गये।
'शासनश्री' अपने सहोदर मुनि को निहार कर उनके दर्शन कर अपने भाग्य की सराहना करने लगी। सुमधुर गीत गाकर भाई का स्वागत किया, पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमणजी और साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी का संदेश पाकर मानों एक बार पूर्व स्वस्थता की अनुभूति करने लगी।
एक घंटे से ज्यादा व्हील चैयर पर बैठकर सेवा की, दूसरे दिन लगभग तीन घंटा सेवा की उनकी प्रसन्नता देखकर सुनकर एक बार सभी ने निश्चिंतता की अनुभूति की। हम लोग भी एक बार मर्यादा महोत्सव के लिए श्री चरणो में पहुंच गये। गुरुदेव की दूरदृष्टि का ही यह सुपरिणाम मानता हूं कि पूज्यप्रवर ने हमें समय पर मंगल पाठ सुनाया और हम साध्वी श्री को सेवा करवाने पुनः दादर आये। साध्वीश्री की स्थिति देखकर लगा कि अब ज्यादा समय नहीं लगता मेरी भावना थी कि मैं साध्वीश्री को एक थोकड़े की भेंट दूं। साध्वीश्री भी तप में लग गये अंत में तेले में चौविहार संथारा स्वीकार कर चार तीर्थ के मध्य देवलोक पधार गई, मेरे भी १८ दिन की तपस्या हो गई। ऐसी पुण्यात्मा, धन्यात्मा के प्रति यही मंगल कामना करता हूं कि वे उत्तरोत्तर विकास करती हुई अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करें।