तुम्हारे साहस और शौर्य को साधुवाद
ज्यों ही संवाद सुना कि 'शासनश्री' साध्वी सोमलताजी ने अनशन स्वीकार किया है, प्रभु महावीर का यह वाक्य गुंजित होने लगा ‘‘इच्चेतं विमोहायतणं हिय सुहं, खमं निस्सेयसं आणुगमियं’’। यह मरण प्राण विमोह की साधना का आयतन, हितकर, सुखकर, कालोचित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है। अपने तीसरे मनोरथ को पूर्ण कर तुम धन्य हो गई, शत-शत साधुवाद तुम्हारे साहस और शौर्य को। तुम अत्यन्त सौभाग्यशालिनी हो कि गुरु दर्शन और सेवा का सुअवसर पा लिया। तपोमूर्ति कमल मुनि का सान्निध्य और सहयोग मिल गया। 55 वर्ष पूर्व की स्मृतियां ताजा हो रही हैं जब सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति साध्वी प्रमुखा लाडांजी ने तुम्हें हमारे बीदासर में दीक्षा प्रदान की। चाहे तुम गंगाशहर की हो पर असली जन्म तो हमारे बीदासर में ही हुआ और ओज आहार भी बीदासर का ही लिया, उसका भी अपना महत्व है। चढ़ते हुए वर्धमान परिणामों से अपना काम सिद्ध किया, संथारा संपन्न हो गया। धन्य-धन्य तुम्हारे शौर्य और साहस को...