अनंत विशेषताओं की समवाय
वाणी में माधुर्य, होठों पर मुस्कान, आंखों में ममता, हृदय में उमंग, गाते हुए बढ़ो, हंसते हुए मिलो, मुस्कुराते हुए विदा... इन पंक्तियों में प्रतिबिंबित था 'शासनश्री' साध्वी सोमलता जी का जीवन। वे अनंत विशेषताओं की समवाय थी, कैसी भी परिस्थिति आए, उन्हें हर हालात में जीने का हुनर आता था। अपना बनाने की उनमें अद्भुत कला थी। अपने आत्मीयता पूर्ण निश्छल व्यवहार से प्रथम मिलन में ही सबका मन मोह लेती थी। वह दिन कितना सुहाना, पवित्र और भव्य उजाला भरने वाला था जिस दिन परम प्रतीक्ष्य गुरुदेव श्री तुलसी के निर्देशानुसार साध्वीप्रमुखा श्री लाडांजी ने तुम्हें अनमोल संयम रत्न प्रदान किया था। अनंतकाल से भटकती आत्मा के लिए यह सर्वोत्तम उपलब्धि थी। तपोमूर्ति उग्रविहारी मुनि कमलकुमार जी की बड़ी बहिन होने का सौभाग्य उन्हें मिला था। वे पुरुषार्थ की नजीर थी, हर कार्य में वे आगे रहती थी। उनके साथ जीए गए मधुरिम पल स्मृति पटल पर उभर रहें हैं, पर उन्हें शब्दों में बांधना बड़ा मुश्किल है । मैं मंगलकामना करती हूं दिवंगत आत्मा की चेतना के उर्ध्वारोहण की। शीघ्र उनकी आत्मा मोक्ष श्री का वरण करे।