साधुत्व की शोभा को शतगुणित किया
'शासनश्री' साध्वी सोमलताजी का अनशन के साथ देवलोक गमन हो गया। वे प्रबुद्ध, श्रमशील, संघनिष्ठ साध्वी थी। काफी वर्षों से वेदनीय कर्म के साथ जूझ रही थी। साध्वीश्री जी के जितना वेदना का योग था तो पुण्य का भी प्रबल योग था। मैंने देखा नंदनवन में आपका मनोबल और उत्साह शिखर को छू रहा था। अंतिम समय में गुरु सेवा का लाभ प्राप्त किया और साधु जीवन के अंतिम चरण अनशन के साथ साधुत्व की शोभा को शतगुणित कर लिया। बड़े-बड़े क्षेत्रों में चातुर्मास किया। तीव्र वेदना होने पर भी आप क्षेत्रों में विचरण करते थे। आपकी सहिष्णुता बेजोड़ थी। संघनिष्ठा, गुरुनिष्ठा बेजोड़ थी। आपको गंगाशहर की पावन धरा पर अवतरित होने का भाग्य प्राप्त हुआ तो 'उग्रविहारी तपोमूर्ति' मुनि कमल कुमार जी स्वामी की भगिनी कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। साध्वी शकुंतलाश्री जी, साध्वी संचितयशा जी आदि साध्वियों ने बहुत सेवा की है। सेवा महानिर्जरा का साधन है, जिसे चारों ही साध्वियों ने बहुत तन-मन से की है। अब चारों साध्वियां मनोबल बनायें रखें। सभी साध्वियों के चित्त समाधि की मंगल कामना करते हैं। दिवंगत आत्मा के उर्ध्वारोहण की मंगल कामना।