वर्धमानता विकास का प्रतीक है : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 15 सितंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी गंगापुर में भाद्रव शुक्ला नवमी को ही पट्टासीन हुए थे। दशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने गुरुदेव श्री तुलसी को गणाधिपति के अलंकरण से अलंकृत किया और उनके पट्टोत्सव को विकास महोत्सव के रूप में स्थापित किया।
विकास महोत्सव के पावन अवसर पर विकास के पुरोधा एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक मंगलकामना या आशीष की भाषा में कहा गया है। वर्धमानता विकास की प्रतीक है। विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण बात होती है कि विकास की दिशा क्या है?
विकास तो गलत दिशा में हो सकता है और सही दिशा में भी हो सकता है। गलत दिशा में विकास या गति हो जाती है, वो एक प्रकार से ह्रास होता है। वास्तव में विकास वह है, जहाँ सही दिशा में गति होती है। संभवत: उसे विकास कहना संगत हो सकता है। विकास की दिशा बताई गईज्ञान। ज्ञान के क्षेत्र में विकास करो।
ज्ञान एक पवित्र तत्त्व है। दर्शन में विकास करो। श्रद्धा-रुचि सही हो और वो पुष्ट हो जाए, सम्यक्त्व पुष्ट रहे। जब तक क्षायिक सम्यक्त्व न आ जाए दर्शन का विकास रह सकता है। चारित्र में विकास हो। संयम में विकास हो। क्षांति-सहिष्णुता में विकास हो। मुक्ति-अनासक्ति, निर्लोभता में विकास हो। ये पाँच तत्त्व जो विकास के बताए गए हैंज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षांति और मुक्ति, इनमें वर्धमान बनो। परमपूज्य आचार्य तुलसी जो विकास महोत्सव से जुड़े हुए हैं। यह विकास महोत्सव एक सिंहासन पर विराजमान है। वह सिंहासन हैविसर्जन और त्याग। हमारे धर्मसंघ में आचार्य तुलसी का विशेष कीर्तिमान यह है कि अपनी विद्यमानता में आचार्य पद का विसर्जन कर दिया। त्याग करना भी बहुत बड़ी बात होती है, फिर सत्ता का त्याग करना। सत्ता का कहीं त्याग करना उपयुक्त हो सकता है, कहीं त्याग न करना भी ठीक हो सकता है। आचार्य तुलसी ने कहा था कि अब मेरा पट्टोत्सव न मनाया जाए। वर्तमान आचार्य का ही पट्टोत्सव मनाया जाता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने कहा कि ठीक है, हम आपका पट्टोत्सव नहीं मनाएँगे पर आज के दिन को नहीं छोड़ेंगे। उस दिन को हम तब से लेकर अब तक विकास महोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं।
परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने आज ही के दिन 32 वर्ष पूर्व साध्वीप्रमुखाश्री जी को महाश्रमणी पद पर एवं मुनि मुदित यानी मुझे महाश्रमण के पद पर प्रतिष्ठित किया। यह भी उनका एक विशेष कदम था। नए पद का सृजन किया। यह भी भविष्य के लिए एक पथदर्शन हो गया कि ऐसा भी किया जा सकता है।
मैं उनके प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करता हूँ कि मुझे उन्होंने इस लायक समझा। मुझे भी गुरुदेव तुलसी एवं युवाचार्य-आचार्य महाप्रज्ञ जी की सेवा-चरणोपपात में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। सहिष्णुता का हमारा विकास हो। निर्लोभता और अनासक्ति रहे। आज के विकास महोत्सव में तेरापंथ विकास परिषद का भी योग है। मांगीलाल सेठिया इसके संयोजक हैं। बुद्धमल दुगड़, बनेचंद मालू व पद्मचंद पटावरी इसके सदस्य हैं। ये अपना आध्यात्मिक चिंतन-मंथन समाज को दे सकते हैं। नैकितका, आध्यात्मिकता, धार्मिकता पुष्ट होती रहे। विकास महोत्सव और मर्यादा महोत्सव दो महोत्सव हैं। तीसरा महोत्सव तेरापंथ स्थापना दिवस है। ये हमारे संघीय संदर्भ में प्रतिष्ठित दिवस हैं। विकास महोत्सव के अवसर पर स्वरचित गीतश्री भैक्षव शासन सुरतरुवर की छाँव---। का सुमधुर संगान किया।
पूज्यप्रवर ने विकास महोत्सव के आधार पत्र का वाचन किया। यह पत्र आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा वि0सं0 2051 भाद्रवा शुक्ला नवमी को दिल्ली में प्रतिष्ठित किया गया था। चारित्रात्माओं की नई मर्यादावली का संस्करण पूज्यप्रवर ने तैयार किया है। उसके बारे में पूज्यप्रवर ने फरमाया। पूज्यप्रवर ने चतुर्मास के पश्चात चारित्रात्माओं के विहार के निर्देश फरमाए।
साध्वीवर्या जी ने विकास के बारे में बताया। साध्वी चारित्रयशा जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
तेरापंथ विकास परिषद के सदस्य पद्मचंद पटावरी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मंडल द्वारा गीत की प्रस्तुति दी गई। संघगान के साथ विकास महोत्सव कार्यक्रम का समापन हुआ।