दुर्लभ मानव जीवन को उत्तम तरीके से जीएं  : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुर्लभ मानव जीवन को उत्तम तरीके से जीएं : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षण गण के एकादशम् अधिनायक अपनी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र के ऐतिहासिक नगर पुणे पधारे। आगमवाणी की अमृत रसधारा प्रवाहित कराते हुए परम पावन ने फरमाया कि जीवन में समय का बहुत महत्व होता है। समय हमें निःशुल्क मिलता है। जैसे मेघ सबके लिए बरसता है वैसे ही समय की वर्षा भी सबके लिए होती है। शास्त्र में कहा गया है- क्षण को जानो। हम समय-अवसर का मूल्यांकन करें। हम मनुष्य हैं, मनुष्य होना भी अपने आप में एक विशेष बात है। क्योंकि मानुषत्व को दुर्लभ बताया गया है। जिसे दुर्लभ बताया गया है, वह हमारे लिए अभी उपलब्ध है। इस मानव जीवन में धर्म की प्राप्ति होना, धर्म को सुनने का मौका मिलना व धर्म की जानकारी हो जाना और अच्छी बात हो जाती है।
धर्म को प्राप्त कर भी जो आदमी धर्म को छोड़ देता है, भोगाकुल चित्त वाला रहता है, वह आदमी मानो अपने घर में पल्लवित कल्पवृक्ष को उखाड़ कर धतूरे के पौधे को पोषण देता है। धर्म अपने आप में कल्पवृक्ष, चिंतामणी रत्न है और कामधेनू है। मानव जीवन भी मानो चिंतामणि रत्न के समान है जिसमें धर्माराधना की जा सकती है। समय का अंकन हो। मानव जीवन का जो समय मिला है उसमें आदमी आत्म-कल्याण कर सकता है, साधना, आराधना कर सकता है। साधुत्व अपने आप में विशिष्ट है, श्रावकत्व भी बहुत बड़ी चीज है। प्रधानमंत्री के पद के सामने श्रावकत्व पद बहुत महत्वपूर्ण है। श्रावकत्व तो जीवन भर पाला जा सकता है। धर्म को पाकर जो छोड़ देता है वह अभागा आदमी है। धन तो यहीं रहने वाला होता है पर धर्म का प्रभाव आगे भी साथ जा सकता है। धन एक अपेक्षित तत्त्व है, पर वह साध्य नहीं, साधन है। गृहस्थ में रहकर भी धर्म रूपी कल्पवृक्ष को सिंचन दिया जाए। गृहस्थ व्यापार में व्यस्त हैं, पर धर्म को गौण नहीं करें। कहा गया है -
'आगे धन्धो, पाछै धन्धो, धन्धा माहि धन्धो।
धन्धा मांस्यू समय निकाले, वो साहिब को बन्दो।।'
धर्म दो प्रकार का हो जाता है। आत्मगत धर्म और व्यवहारगत धर्म। एक समय सापेक्ष धर्म है, एक समय निरपेक्ष धर्म है। ईमानदारी, सद्भावना और नशामुक्ति, आत्मगत-समय निरपेक्ष धर्म है। कर्म स्थान में भी धर्म हो। समय सापेक्ष उपासना धर्म भी अच्छा है। उपासना यर्थाथरूप में होती है तो हमें पूरा लाभ मिल सकता है। गृहस्थ समय निरपेक्ष धर्म भी रखने का प्रयास करें। दुकानदार ईमानदार हो, धोखाधड़ी न हो। चलते हुए भी अहिंसा धर्म हमारे साथ रहे। जिस प्रकार छाया साथ-साथ चलती है, उसी प्रकार धर्म भी मनुष्य के साथ रहे। कर्म-प्रवृत्ति के साथ धर्म जुड़ जाए, अध्यात्म, नैतिकता साथ में रहे। उत्तम मानव जीवन जो हमें प्राप्त है, उसे उत्तम तरीके से जीने की मंगलकामना रखें। धर्म के साथ जीने का प्रयास करें, दैनंदिन जीवन में धर्म साथ में रहे।पूज्यप्रवर के स्वागत में ज्ञानशाला की सुन्दर प्रस्तुति हुई। स्थानीय सभा अध्यक्ष महावीर कटारिया, शांतिलाल मरलेचा, स्वागताध्यक्ष रतनलाल दुगड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ समाज ने सामूहिक स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।