मन की निर्मलता को बढ़ाने का आयास करें : आचार्य श्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मन की निर्मलता को बढ़ाने का आयास करें : आचार्य श्री महाश्रमण

तीर्थंकर के प्रतिनिधि जगतोद्वारक परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी आज खड़की में पधारे। पूज्यवर ने पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शरीर और आत्मा ये दो तत्व हैं। इन दो तत्वों के योग से हमारे पास वाणी, मन, बुद्धि, पर्याप्ति, प्राण आदि अनेक चीजें हैं। हमारी प्रवृत्ति के तीन साधन हैं- शरीर, वाणी और मन। व्यक्ति शरीर से अनेक कार्य करता है, वाणी से बोलता है और मन से चिंतन, स्मृति और कल्पना करता है। हमारा मन चंचल होता है। मन के कारण आदमी दु:खी भी बन सकता है और सुखी भी बन सकता है। मन के प्रमाद के कारण दु:ख हो जाता है और मन वश में रहता है, तो दु:ख भी नष्ट हो जाते हैं।
मन की दो कमियां है पहला कि मन चंचल रहता है और दूसरा कि कषाय-राग-द्वेष आदि भाव मन के साथ घुल मिल जाते हैं। चंचलता और कषायजन्य मलिनता, इन दोनों को हम जितना कम कर सकें वह हमारे आत्म उत्थान की दृष्टि से महत्वपूर्ण बात हो सकती है। मन तो हर समय चिंतन करता रहता है, चंचल रहता है। परन्तु चंचलता से भी ज्यादा खराब है मन की मलिनता। हम मन की चंचलता को कम करने और मन की निर्मलता को बढ़ाने का आयास करें। आगम में कहा गया कि मन रूपी दुष्ट घोड़ा है जो दौड़ता रहता है। इस दुष्ट घोड़े को श्रुतरूपी लगाम से हम वश में रखने का प्रयास करें। योग-ध्यान से भी इसे वश में किया जा सकता है। हमारे यहां प्रेक्षाध्यान का प्रयोग चलता है, इससे मन की निर्मलता को बढ़ाया जा सकता है। शरीर की चंचलता कम होती है तो संभवत: मन की चंचलता भी कम हो सकती है।
मन हमारा सुमन रहे, दुर्मन न रहे। मन का प्राप्त होना तो अपने आप में विकास का द्योतक है। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक एवं असंज्ञी पंचेन्द्रिय के मन नहीं होता। मन तो केवल संज्ञी पंचेन्द्रिय के ही हाेता है। ज्यादा पाप भी मन वाला प्राणी ही कर सकता है तो मन वाला ही ज्यादा धर्म कर सकता है। सातवीं नरक में मन वाला प्राणी ही जा सकता है और साधना करके मोक्ष भी मन वाला प्राणी अर्थात मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है। सामायिक साधना भी मन को निर्मल रखने की साधना है। तेरापंथ धर्मसंघ में शनिवार को सायं सात से आठ सामायिक चलती है। 50 की उम्र के बाद तो कम से कम रोज की एक सामायिक हो जानी चाहिए जिससे चेतना की निर्मलता बढ़े और आत्मोत्थान होता रहे। हमें मनुष्य जीवन प्राप्त है, इस प्राप्त का हम लाभ उठायें। हम समय को पहचान कर मानव जीवन का मूल्यांकन करते हुए अध्यात्म की साधना करने व मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर के स्वागत में संजय मरलेचा, मरलेचा परिवार की बहनें, भाग्यवंती मरलेचा, गीत मरलेचा, सुमन मरलेचा, एडवोकेट एस के जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की बालिकाओं ने अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेश कुमारजी ने किया।