संयम और शांति से जीएं जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संयम और शांति से जीएं जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण


अध्यात्म जगत के उज्ज्वल नक्षत्र धर्मगुरु धर्माचार्य आचार्यश्री महाश्रमणजी पिंपरी चिंचवड़ से लगभग 10 किमी का विहार कर बोसरी पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि जैन दर्शन के अनेक सिद्धांत हैं- आत्मवाद एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। आत्मवाद से जुड़ा हुआ कर्मवाद भी एक सिद्धांत है। आत्मवाद और कर्मवाद इन दोनों से जुड़ा हुआ एक सिद्धांत है- पुनर्भववाद या पुनर्जन्मवाद। आत्मा तो शाश्वत है, शरीर का नाश होता है। कर्मों से आवृत्त संसारी आत्मा हो या शुद्ध स्वरूप में स्थित सिद्धों की आत्मा हो, आत्मा अमर है। आत्मा अमर है, तभी पुनर्भव की बात हो सकती है। अगर शरीर के साथ आत्मा मरती है तो फिर पुनर्जन्म का सिद्धांत सही नहीं होता।
कई व्यक्तियों को अपने पिछले जन्म या जन्मों का ज्ञान भी हो सकता है। स्व-स्मृति हो जाए, कोई निमित्त मिल जाये, गहराई में आदमी जाता है तो पिछले जन्म की स्मृति हो सकती है। पूर्वजन्म है तो पुनर्जन्म भी हो जाता है। प्रश्न होता है कि आत्मा बार-बार क्यों जन्म लेती है? कहा गया - क्रोध, मान, माया और लोभ ज्यादा तीव्र होते हैं, तो पुनर्जन्म की जड़ों का ये सिंचन करते हैं, आगे से आगे जन्म होता रहता है। जब ये कषाय क्षीण हो जाते हैं, उसके बाद कभी पुनर्जन्म नहीं होता है।
पुनर्जन्म के बारे में संदेह हो तो भी कम से कम अशुभ कार्य जीवन में मत करो, शुभ कार्य करो। सन्देह है कि पुनर्जन्म नहीं है, पर तुमने बुरे काम नहीं किए तो कोई नुकसान वाली बात नहीं है। यदि पुनर्जन्म है, और अच्छे काम किए हों तो आशा करें आगे भी अच्छा जन्म मिल सकता है। पुनर्जन्म है तो भी धर्म करना अच्छा और नहीं है तो भी धर्म करना अच्छा। नास्तिक विचारधारा का सिद्धांत रहा है कि जब तक जीओ अच्छा जीवन जीओ, उधार लेकर भी घी पीयो, मौज का जीवन जीओ। यह चार्वाक का सिद्धांत है, पर आस्तिकवाद कहता है कि आत्मा है, पुनर्जन्म है। पुण्य-पाप का फल आगे भी भोगना पड़ेगा। व्यक्ति हंस-हंस कर पाप कर्म का बंधन करता है पर रोने पर भी उन कर्मों के फल को भोगना पड़ेगा। इसलिए पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करें।
हम धर्म के रास्ते पर चलें, संयम-शांति से जीवन जीएं व दूसरों के जीवन में भी बाधा नहीं डालें। यह बात कल्याणकारी हो सकती है। पूज्यवर के स्वागत में विमल सिंघी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। दुगड़ परिवार ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। इन्दु दुगड़, मंगलचन्द दुगड़, निखिल दुगड़, नितेश दुगड़ ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। पश्चिम महाराष्ट्र आंचलिक सभा के अध्यक्ष त्रिलोक चन्द्र बच्छावत, स्वामी समर्थ स्कूल के वैभव बाबर, अशोक पगलिया, प्रकाश गांधी ने भी अपने स्वागत स्वर प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।