विकास महोत्सव के अवसर पर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा रचित गीत
श्री भैक्षवशासन सुरतरुवर की छांह।
प्रतिदिन प्रोन्नति हो निर्मल मन की चाह॥
ठीक दिशा का निर्धारण हो मानस में उत्साह॥
शुद्ध विवेचन युत चिंतन हो वच में तथ्य प्रवाह।
संयम भावित तप से होता सब पापों का दाह॥
पावन सेवा भाव शुभंकर आत्मोन्नति की राह।
समणोऽहं समणोऽहं स्मृति से हो यतिता निर्वाह॥
स्वाध्याय क्रम रहे व्यवस्थित रह बारह ही माह।
शनिवार सामायिक से हो आभूषित सप्ताह॥
सद्यत्नों से पार करें हम भव का सिन्धु अथाह।
‘महाश्रमण’ आगम सागर में हो गहरा अवगाह॥
नगर भीलवाड़ा पावस ले आध्यात्मिक वाह-वाह।
गुरु तुलसी पट्टोत्सव दिन की आध्यात्मिक वाह-वाह॥
लय : उपकारी गुरुवर ओ थांरो उपकार---