219वें भिक्षु चरमोत्सव के अवसर पर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा रचित गीत
जिनशासन पंचानन को मेरा सविनय शत वन्दन।
श्रद्धास्पद श्रीचरणों में अर्पित श्रद्धा का चन्दन॥
सिरियारी में विभुवर ने शुभ अनशन ग्रहण किया था।
भाद्रव शुक्ला तेरस को फिर अन्तिम श्वास लिया था।
वह पराक्रमी पुरुषोत्तम आस्थास्पद दीपानन्दन॥1॥
सब साधु और साध्वीगण सौहार्द भाव को रखना।
दीक्षार्थी की अच्छे-से वैरंगिक वृत्ति परखना।
वैरागी के भीतर हो वैराग्य-भाव का स्पन्दन॥2॥
मर्यादाओं का बन्धन नि:श्रेयस्कर लगता है।
आगम-स्वाध्याय ध्यान से आत्मार्थीपन जगता है।
चरमोत्सव पर विभुवर! लो सम्मानयुक्त अभिनन्दन॥3॥
यह मेदपाट की धरती यह नगर भीलवाड़ा है।
द्विशताधिक साधु-साध्वियाँ बहती संयम धारा है।
वर ‘महाश्रमण’ गतिमय हो प्रतिपल भैक्षवगण स्यन्दन॥4॥
लय : ओ मेरे वतन के लोगों, जरा याद करो कुर्बानी---