क्रोध या भय से भी ना हो हिंसाकारी झूठ का प्रयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

क्रोध या भय से भी ना हो हिंसाकारी झूठ का प्रयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी महाज्ञानी आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना संग कोरेगांव भीमा पधारे। मुख्य प्रवचन में उपस्थित जनमेदिनी को मंगल देशना प्रदान करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि जैन धर्म में अठारह पाप की प्रवृत्तियां बताई गई हैं, जो पाप का बंध कराने वाली होती हैं। अठारह पापों में दूसरा पाप है- मृषावाद अर्थात झूठ बोलना। आदमी राग-द्वेष के कारण झूठ भी बोल सकता हैं, झूठा दोषारोपण भी दूसरों पर कर सकता है। शास्त्रकार ने मृषावाद के दो कारण बताये हैं- आत्मार्थ या परार्थ। आदमी या तो खुद के हित या बचाव के लिए या दूसरों के लाभ लिए झूठ बोलता है। गुस्से या भय के कारण भी आदमी झूठ बोल सकता है। पूज्यवर ने मृषावाद के बारे में बताते हुए आगे कहा कि हिंसाकारी झूठ नहीं बोलना चाहिए। साधू के तो तीन करण, तीन योग से जीवन भर के लिए मृषावाद बोलने का त्याग होता है। गृहस्थी भी सच्चाई की आराधना करने का प्रयास करें। सत्य की उपासना करनी चाहिए, तीर्थंकर या गुरु की उपासना भी की जाती है, अनेक रूपों में उपासना की जा सकती है तो ईमानदारी की भी उपासना करने का प्रयास करना चाहिए।
संकल्प का बल बड़ा होता है। संकल्प बल से भय नहीं लगता है। जिसने भय को जीत लिया वह दु:ख मुक्त है। झूठ बोलने का एक कारण भय होता है। मुंह को साफ करने के लिए एक तरीका है मंजन करना। मुंह को साफ रखने का दूसरा तरीका है मुंह से कटु व झूठ नहीं बोलना, मांसाहार नहीं करना, मद्यपान नहीं करना। मुंह तो ऊपरी बात है, मूल में आत्मा को मलिन होने से बचाना है। अपने लिए या दूसरों के लिए, क्रोध से या भय से, हिंसाकारी झूठ नहीं बोलना चाहिए। हमारा लक्ष्य रहे कि हमारे द्वारा गलत बात न तो लिखी जाए न कही जाए। झूठ से बचना बड़ी बात है। आदमी न भाषण के द्वारा अयथार्थ बोले, न लेखन के द्वारा अयथार्थ बात लिखे। बेईमानी के दो बड़े आयाम हैं- झूठ-कपट और चोरी। इन दोनों को जो छोड़ दे वह ईमानदार है। गृहस्थों को भी ज्यादा से ज्यादा बेईमानी से बचने का प्रयास करना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।