शासनमाता का अद्भुत था समर्पण

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शासनमाता का अद्भुत था समर्पण

तेरापंथ धर्मसंघ एक गौरवशाली धर्मसंघ है जहां आचार्यों की गौरवशाली परंपरा है वहीं साध्वीप्रमुखाओं की भी गौरवशाली परंपरा है। आज तेरापंथ धर्मसंघ की आठवीं साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी की द्वितीय वार्षिक पुण्यतिथि है। आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उन्हें बहुमान व सम्मान देते हुए शासनमाता का अलंकरण दिया। शानमाता साध्वीप्रमुखा जी समर्पण की जीवंत प्रतिमा थी। उनका मानना था कि मैं तो एक अनगढ़ पाषाण खंड के रूप में इस धर्मसंघ में आई और गुरुदेव तुलसी ने मुझे तराश कर प्रतिमा का रूप दिया। ऐसी विलक्षण व्यक्तित्व की धनी शासनमाता ने अपने 50 वर्षीय अनुशासना में साध्वी समाज को जो ऊंचाइयां दी है वह अविस्मरणीय है। समूचा साध्वी समाज शासनमाता के वात्सल्यमय नेतृत्व से श्रद्धा प्रणत था। आज शासनमाता तो हमारे बीच नहीं है पर हम उनके सद् संस्कारों को अपने जीवन में आत्मसात करें यही अभिप्सा है।
ये विचार 'शासनश्री' साध्वी मानकुमारी जी ने शासनमाता की पुण्यतिथि पर व्यक्त किए। इस अवसर पर साध्वी कीर्तिरेखा जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वी कुशलप्रज्ञा जी, साध्वी चैत्यप्रभा जी, साध्वी इन्दुयशा जी एवं साध्वी स्नेहप्रभा जी ने 'व्यक्तित्व शासनमाता का' कार्यक्रम की सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी कीर्तिरेखा जी एवं साध्वी काव्ययशा जी के मंगलाचरण से हुआ। रीना बैद, प्रेमदेवी विनायकिया ने भी अपने विचारों के द्वारा अभ्यर्थना की। कार्यक्रम का संयोजन साध्वी इन्दुयशा जी ने किया। दोपहर में 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं शासनमात्रै नमः' के जप में अच्छी संख्या में महिला मंडल की बहनों ने भाग लिया।