
'शासनश्री' साध्वीश्री सोमलता जी के प्रति चारित्रात्माओं के उद्गार
भिक्षु गण के नीलगगन में इन्द्रधनुष लहराया।
गंगाणा की लाडली से तेरापंथ हरसाया।।
देव गुरु धर्म श्रद्धा से, जीवन धन्य बनाया,
भिक्षु शासन के गौरव को, शिखरों सदा चढ़ाया।
आगम बत्तीस वाचन से, नव इतिहास रचाया।।
जिनकी प्रवचन पटुता से, यह नंदनवन मुस्काया,
प्रियभाषी मृदुुभाषी का, आकर्षण सदा सुहाया।
साधना आराधना से, शिव-सुख अविचल पाया।।
सेवा निष्ठा की सौरभ से, कण-कण बन गया पावन,
गुरु निष्ठा गण निष्ठा से, महकाया जीवन गुलशन।
संस्कारों से व्यवहारों से, भारी सुयश कमाया।।
शासन मंदिर शासन पूजा, जिनशासन मन की धड़कन,
शासन की पूजावेदी पर, तन-मन प्राण किए अर्पण।
अद्भुत अभिनव मनस्विनी ने, सूरज नया उगाया।।
प्राणकोष में नवपद पावन, सफलता की कुंजी,
ध्यानयोग से साम्ययोग से, पायी अद्भुत महापूंजी।
आत्मबल से मनोबल से, सुयश शंख बजाया।।
लय - जनम जनम का साथ