शुभ परिणाम, विशुद्ध लेश्या हमारे भीतर में रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शुभ परिणाम, विशुद्ध लेश्या हमारे भीतर में रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

चैत्र शुक्ला प्रतिपदा - नव वर्ष विक्रम संवत 2081 का शुभारम्भ। आध्यात्म शक्ति संपन्न आचार्य श्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ आज शिरूर पधारे। युगपुरुष आचार्य प्रवर ने मंगल पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि विद्यार्थी विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। चारित्रात्मा भी शास्त्राभ्यास के रूप में अध्ययन करते हैं। प्रश्न होता है कि अध्ययन करने से क्या लाभ है ?
अध्ययन से पहला लाभ है- ज्ञान प्राप्ति।
अध्ययन का दूसरा लाभ है- एकाग्र चित्त होना।
तीसरा लाभ है- विद्यार्थी सन्मार्ग में स्थित हो जाए।
चौथा लाभ है- स्वयं सन्मार्ग में स्थित होकर दूसरों को भी सन्मार्ग में लाने का प्रयास करें। ज्ञान एक पवित्र तत्त्व है। अध्यात्म विद्या का ज्ञान तो आत्म कल्याण की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। अध्ययन के लिए पुस्तकें व शिक्षक भी बहुत उपयोगी हैं। विद्यार्थी हो, पढ़ने की अभिलाषा हो, शिक्षक हो, सामग्री हो और स्थान भी हो, इन सभी सुविधाओं के मिलने से ज्ञान प्राप्ति में आसानी हो जाती है। बच्चे तो अध्ययन करते ही हैं, 60 वर्ष का व्यक्ति भी विद्यार्थी बन सकता है। ज्ञान ग्रहण करने में उम्र अवरोधक नहीं बनती है।
नव वर्ष के उपलक्ष में पूज्य प्रवर ने फरमाया कि आज नया वर्ष शुरू हुआ है। वि.सं. 2080 की विदाई हो गई और 21 वीं शताब्दी का नवमां दशक शुरू हो गया है। धार्मिक संदर्भों में विक्रम संवत के अनुसार ही कार्यक्रमों का निर्धारण होता है। नव वर्ष पर मंगल पाठ भी उच्चरित किया जाता है। मंगल पाठ पवित्र वाणी है जो हमारे कानों में पड़ती है, यह हमारे कानों के लिए भी और आत्मा के लिए भी अच्छी है। पूज्य प्रवर ने नव वर्ष 2081 के उपलक्ष में वृहद मंगल का समुच्चारण करवाया एवं सद् संकल्प ग्रहण करने हेतु अभिप्रेरित किया। आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि जो समय को रोका नहीं जा सकता, वह अपनी गति से चलता रहता है। हम काल का बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करें। यह चिंतन करें कि हमें समय का सदुपयोग करना है। क्षण भर भी प्रमाद न करें, समय आने से पहले जागरूक रहें। एक वर्ष के कालमान में अनेकों लौकिक एवं लोकोत्तर त्योंहार आ जाते हैं। हम धार्मिक दृष्टि से ध्यान दें कि हमारी धार्मिक साधना अच्छी चले, हम आत्मोत्थान के लिए प्रयास कर सकें।
वर्ष शुभ योगों में, धर्म के साथ, साधना में बीतता है तो वह हमारे लिए तो शुभ हो सकता है। हम मन, वचन और काय की शुभ प्रवृति करने का प्रयास करें। शुभ परिणाम, शुभ अध्यवसाय, विशुद्ध लेश्या हमारे भीतर में रहे। स्थानीय विद्यालय की ओर से शिरीष बरमेचा ने आचार्य प्रवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। मुख्य प्रवचन से पूर्व पूज्यप्रवर का स्थानकवासी श्रमण संघ के मंत्री कमल मुनि 'कमलेश' के साथ स्थानक भवन में आध्यात्मिक मिलन हुआ, वहां भी नव वर्ष के उपलक्ष में आचार्य प्रवर द्वारा मंगल पाठ का समुच्चारण किया गया।