अनेक चित्ताें वाले मनुष्य की भावधारा रहे शुभ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अनेक चित्ताें वाले मनुष्य की भावधारा रहे शुभ : आचार्यश्री महाश्रमण

शान्त सौम्य मूर्ति आचार्य श्री महाश्रमणजी का आज प्रातः कमरगांव में पदार्पण हुआ। परम पावन ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि यह पुरुष अनेक चित्तों वाला होता है। हमारे जीवन में भाषा की लब्धि भी होती है। कई मनुष्य वाणी की समस्या से युक्त होते हैं, पूरा बोल नहीं पाते हैं। वाणी हमारे जीवन में एक तत्त्व है। शरीर से भी अनेक प्रवृत्तियां होती हैं, मन के द्वारा हम सोचते हैं, स्मृति करते हैं, कल्पना कर लेते हैं। मन की चंचलता ज्यादा है, मन में इतने भाव उभरते हैं, मानो चित्त के केनवास पर कोई चलचित्र दिखाई दे रहा है, नये-नये दृश्य उभरते रहते हैं। शास्त्रकार ने कहा कि पुरुष अनेक चित्तों वाला है, उसके विचार बदलते रहते हैं।
जैन दर्शन में लेश्या का वर्णन प्राप्त होता है। पच्चीस बोल में 17वां बोल है लेश्या छः। छः प्रकार की लेश्याएं हमारी भीतरी भावधारा की द्योतक हैं। सबसे खराब कृष्ण लेश्या की भावधारा है, फिर नील व कापोत, उससे कुछ ठीक है, पर है अशुभ की कोटि में। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ल लेश्या शुभ की कोटि में आ जाती हैं। क्रमश: अशुद्धि कम होते हुए शुद्धि होती है शुक्ल लेश्या तो सबसे उत्कृष्ट लेश्या है, इस भावधारा में रहे तो लेश्या निर्मल रहती है। पूज्य जयाचार्य ने झीणी चर्चा में लेश्या और योग का विश्लेषण किया है कि जहां लेश्या है, वहां योग है और जहां योग है वहां लेश्या भी होगी। दोनों में सहचरत्व है फिर भी कुछ अन्तर भी माना गया है। हमारी भावधारा में परिवर्तन होता है। हम प्रयास करें कि परिवर्तन हो तो शुभ का शुभ में ही हो, अशुभ का शुभ में हो जाए, हम अशुभ भावधारा में न जाये।
जैसे चौदह गुणस्थानों को चौदह सीढ़ियां मान लें तो छः लेश्या को भी हम छः बड़ी सीढ़ियां मान सकते हैं। उदाहरण के तौर पर मंच पर जाने की सीढ़ियां छः लेश्या मानी जा सकती है तो उपरी मंजिल में जाने के लिए चौदह सीढियों रूपी गुण स्थान है। हम ज्यादा से ज्यादा शुक्ल लेश्या में रहे और साधना करते-करते अलेश्य बन चौदहवें गुणस्थान में पहुँच जाये। आत्मा अलेश्य बनी है तो अयोग भी बन जाती है। आश्चर्य की बात है कि पहले गुणस्थान में भी शुक्ल लेश्या हो सकती है और छठे गुण स्थान में भी कृष्ण लेश्या हो सकती है। कहा गया है कि भगवान महावीर भी जब छद्मस्थ अवस्था में थे तब उनमें भी छः लेश्या थी। पूज्य प्रवर ने उपस्थित ग्रामीण जनता को लक्ष्य कर कहा कि जीवन मे ईमानदारी रखें, चोरी से बचने का प्रयास रहे।
अहिंसा की भावना रहे, हो सके तो किसी का कल्याण करने का प्रयास करें दूसरे को कष्ट नहीं पहुंचाएं। जीवन में नशामुक्ति-संयम रहे। अपना समय धार्मिक-आध्यात्मिक साधना में लगाएं। विचार और आचार अच्छा रहे, भावधारा-लेश्या शुभ रहे यह काम्य है। पूज्यप्रवर के स्वागत में जिला परिषद स्कूल अध्यक्ष व पत्रकार हेमन्त साठे, स्कूल से मौली महाराज एवं सरपंच तुकाराम मात्रे ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।