ज्ञान और आचार संपन्न पीढ़ी का हो निर्माण : आचार्य श्री महाश्रमण
परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी राजणगांव से प्रातः विहार कर सरदवाड़ी स्थित अभिनव विद्यालय के प्रांगण में पधारे। पूज्यप्रवर ने मुख्य प्रवचन में उपस्थित जनमेदिनी को सम्बोधित करते हुए फरमाया कि हमें इंसान बनने का अवसर प्राप्त हुआ है। चौरासी लाख जीव योनियों बताई गई हैं, उनमें यह मानव जीवन अपने आप में विशिष्ट होता है। इस मानव जीवन को प्राप्त कर जो आदमी धर्म की आराधना नहीं करता है, पाप के मार्ग पर चलता है, वह मानो परिश्रम से प्राप्त चिंतामणि रत्न को प्रमाद के कारण समुद्र में गिरा देता है। मानव जीवन में आदमी साधु बन जाए, यह तो बहुत ही विशेष बात है परंतु हर कोई साधु बन जाए यह कठिन है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी अच्छे संस्कारों से युक्त जीवन जीना यह प्रयास विषय बन जाता है।
आज शिक्षा का कितना फैलाव हुआ है। कितने-कितने बच्चे पढ़ाई के लिए अपने देश से विदेश में जाते हैं। शिक्षा के प्रति सरकार भी जागरुक है, अभिभावक एवं बच्चे भी जागरुक हैं। ज्ञान की दृष्टि से शिक्षा का बड़ा महत्त्व है। अनेक भाषाएं और विषय पढ़ाए जाते हैं, उनके साथ अच्छे संस्कार भी बच्चों में आए ऐसा प्रयास अपेक्षित है। विद्वान होने के साथ विनयशील होना यह सोने में सुहागा जैसी बात हो जाती है। विनय भी एक अच्छा संस्कार है, विद्यार्थी में विनय के साथ ईमानदारी का संस्कार भी आए। ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है, इस नीति को व्यवहार में भी लाएं। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं भले धर्म, राजनीति या समाज के क्षेत्र में, कभी तो वे बच्चे ही थे। बच्चे ही आगे जाकर बड़े महापुरुष बनते हैं। बच्चे अच्छे, सच्चे और पक्के हों तो भविष्य अच्छा हो सकता है। शिक्षकों की भी एक अच्छी भूमिका बच्चों के संस्कार निर्माण में हो सकती है।
माता-पिता, धर्मगुरु, साहित्य भी बच्चों में अच्छे संस्कार देने का प्रयास कर सकते हैं। चारों ओर से अच्छे संस्कारों की वर्षा होगी और अच्छे संस्कार बच्चों में पुष्ट हो जाएंगे, तो व्यक्तित्व निर्माण का बड़ा कार्य हो सकेगा। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के द्वारा जीवन विज्ञान का उपक्रम प्रस्तुत किया गया जिससे बच्चों में अच्छे संस्कार उर्वरित हो सकते हैं। डिजिटल डिटॉक्स एवं ड्रग्स निवारण के संकल्प बच्चों में रहते हैं तो बच्चों के जीवन का क्रम अच्छा रह सकता है। बच्चे झूठ-कपट और चोरी से बचे रहेंगे तो उनमें ईमानदारी के भाव पुष्ट होंगे। ईमानदारी के अभाव में विश्वास भी घटता है और आत्मा भी मलिन होती है।
विद्यालय का प्रांगण तो सरस्वती का मंदिर होता है। इस मन्दिर में ज्ञान की आराधना होती है। अच्छे संस्कार भी ज्ञान का ही एक अंग है। सुसंस्कार युक्त बच्चे हो, ज्ञान और आचार संपन्न पीढ़ी का निर्माण हो यह जिम्मेदारी शिक्षक वर्ग की हो जाती है। अहिंसा महान धर्म है, अहिंसा का संस्कार भी बच्चों में रहे, बिना मतलब किसी को तकलीफ ना पहुंचाएं। संचालक भी इस ओर जागृत रहे कि विद्यालय में ज्ञान के साथ चरित्र का उन्नयन भी होता रहे। पूज्यवर के स्वागत में अभिनव विद्यालय की ओर से अध्यापकों ने अपनी भावना व्यक्त की। पूज्य प्रवर के श्री चरणों में आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति मुंबई के शिष्टमंडल ने 'युगप्रधान की यशस्वी यात्रा - मुम्बई प्रवास 2023-2024' पुस्तक गुरुदेव को समर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।