प्रज्ञा के अवतारी प्रभुवर!
बालूनंदन, मालूभ्राता, तुमको आज बुलाएं हम।
प्रज्ञा के अवतारी प्रभुवर! प्रज्ञा का वर चाहें हम।।
तुलसी की अनुकृति बन गण का, गौरव शिखर चढ़ाया था।
निज प्रातिभ कौशल से तुमने, जस-झंडा फहराया था।
तुलसी पट्टधर महाप्रज्ञ, गुरुवर की महिमा गाएं हम।।
महाप्रज्ञ प्रभुवर को पाकर, भाग्य सराएं हम अपने।
ज्ञानामृत का पान कराकर, गण को तृप्त किया तुमने।
सदी बीसवीं के नायक को, श्रद्धा सुमन चढ़ाएं हम।।
अतीन्द्रिय चेतना तेरी जागृत, तुमने गण भंडार भरा।
मिला इशारा तुलसी प्रभु का, उसी दिशा में कदम धरा।
समर्पण के महासुमेरू! तुमसे ऊर्जा पाएं हम।।
पुण्यतिथि है आज तुम्हारी, स्मृतियां रह रहकर आए।
कहां गए वात्सल्य वारिधि, मनहर मूरत दिखलाए।
महाश्रमण में महाप्रज्ञ है, सबको आज बताएं हम।।
दो ऐसा आशीर्वर हमको, सदा बढ़ाएं गण-सम्मान।
महाश्रमण प्रभु चरण-शरण में, फल जाएं सारे अरमान।
जयवंता यह भैक्षव-शासन, गण में मोद मनाएं हम।।
लय - कलियुग बैठा मार