बच्चे बनें श्रुत और शील संपन्न : आचार्यश्री महाश्रमण
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमणजी का चिंचोड़ी पाटिल में पावन पदार्पण हुआ। मंगल देशना प्रदान कराते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि यह मनुष्य जीवन बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसको दुर्लभ भी कहा गया है। इस मनुष्य जन्म से ही कोई प्राणी सीधा मोक्ष में जा सकता है। प्रश्न होता है इस मानव जीवन जीने का क्या लाभ है ? शास्त्र में बताया गया है कि पूर्व पाप कर्म का क्षय करने के लिए, मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस देह को धारण करना चाहिए। दुनियां में अनेक कलाएं हैं, बहत्तर कलाओं का वर्णन प्राप्त होता है किन्तु जिसने जीने की कला नहीं सीखी उसके लिए शेष सब व्यर्थ है।
सभी कलाएं हैं विकलाएं, पंडित सभी अपंडित हैं।
नहीं जानते कैसे जीना, केवल महिमा मंडित है।।
बहत्तर कलाओं में कोई कुशल हो, पंडित हो गया हो, फिर भी वह अपंडित ही है, अगर सब कलाओं में श्रेष्ठ कला, धर्म की कला को वह नहीं सीखता है। मानव जीवन में धर्म का आचरण करना चाहिये। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र धर्म है। ज्ञान सही होता है तो आचरण भी सही हो सकता है। धर्म की कला में तप को और जोड़े दिया जाये तो और निखार आ सकता है। विद्यार्थी, शिक्षक, माता-पिता और धर्म गुरु आदि सब मिलते हैं तो एक विद्यार्थी का अच्छा निर्माण हो सकता है। विद्यालय विद्या का एक मन्दिर होता है। अभिभावकों की यह आशा होती है कि हमारा बच्चा ज्ञानवान, धनवान और संस्कारवान बने। विद्यालय और शिक्षक मानो एक पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं, राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहे हैं।
राष्ट्र का भविष्य ये बालपीढ़ी होती है। बच्चे श्रुत और शील सम्पन्न बनें। कोरा ज्ञान अधूरा है, इसके साथ चरित्र जुड़ जाए तो परिपूर्णता आ सकती है। बच्चे झूठ, चोरी, गुस्से, नशे से बचकर रहें। माता-पिता भी बच्चों को अच्छे संस्कार देते रहें। शिक्षक स्वयं संस्कारी हो तो उसका प्रभाव ज्यादा अच्छा हो सकता है। गुरु कौन होता है ? जो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करते हैं, वो गुरु होते हैं। ज्ञान और सद्गुणों से बच्चे बड़े बनें। अच्छे संस्कार, शिक्षा कई बार बरसों तक स्मृति में रह सकते हैं। पूज्य प्रवर ने विद्यार्थियों एवं ग्राम वासियों को सद्भावना, नैतिकता एवं नशा मुक्ति की प्रेरणा देते हुए संकल्पत्रयी स्वीकार करवाई। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच शरद पवार, पंचायत समिति सभापति प्रवीण ओकाटे, स्कूल कमिटी की ओर से आबासाहब ओकाटे एवं जैन समाज की ओर से करिश्मा छाजेड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।