संत भीखणजी के जीवन से लें साहस और मनोबल की प्रेरणा : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संत भीखणजी के जीवन से लें साहस और मनोबल की प्रेरणा : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी धानोरा के जनता विद्यालय प्रांगण में पधारे। तेरापंथ के राम ने फरमाया कि आदमी समता में उपस्थित हो जाता है तो संकल्पों-विकल्पों का प्रणास हो जाता है, जो राग-द्वेषात्मक संकल्प-विकल्प मन में उभरते हैं, उनसे मुक्ति मिल जाती है।
समता की विशिष्ट साधना करने वाले कई मनुष्य दुनिया में हुए हैं। प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में भरत और ऐरावत क्षेत्र में 24-24 तीर्थंकर होते हैं। इस जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में वर्तमान अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ हुए व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। दुनिया में और भी विशिष्ट पुरुष हुए हैं, रामचन्द्रजी भी विशिष्ट पुरुष हुए हैं जिन्हें जैन धर्म में मोक्षगत माना गया है। आज रामनवमी है, कोई-कोई तिथि विशिष्ट पुरुषों के साथ जुड़‌ जाती है तो वह तिथि गरिमामय स्थान को प्राप्त कर लेती है। कार्तिक अमावस्या भी भगवान महावीर और रामचंद्र जी के साथ जुड़ी हुई है। आज की यह चैत्र शुक्ला नवमी भिक्षु स्वामी के साथ भी जुड़ी हुई है। 264 वर्ष पूर्व आज के दिन संत भीखण जी ने अभिनिष्क्रमण किया था। मारवाड़ का कांठा क्षेत्र भीखण जी के जन्म, प्रथम दीक्षा, अभिनिष्क्रमण और महाप्रयाण के साथ जुड़ा हुआ है। बगड़ी भिक्षु स्वामी का दीक्षा स्थल, अभिनिष्क्रमण स्थल व सांसारिक अवस्था का ससुराल का स्थान भी है।
जीवन में कई स्थितियां आ सकती हैं। कुछ व्यक्ति उन स्थितियों से लाभ उठाने का प्रयास कर लेते हैं। आचार्य भिक्षु के बुद्धि, प्रतिभा का अच्छा क्षयोपशम था, उनकी प्रतिभा विशिष्ट थी। उनका पुरुषार्थ उस क्षयोपशम का उपयोग करने में रहता था। उन्होंने शास्त्राभ्यास भी किया और उन्हें असन्तोष भी हुआ। असन्तोष भी कभी-कभी उत्थान की दिशा में बढ़ाने वाला हो सकता है। विकास में सन्तोष नहीं करना चाहिये। उन्हें लगा कि जिस आम्नाय में मैं हूं वहां का आचार-विचार सन्तोषप्रद नहीं है, इसमें परिष्कार अपेक्षित है। गुरु से सन्तोषजनक चर्चा-वार्ता नहीं होने पर उन्होंने अभिनिष्क्रमण करने का चिंतन किया। भीखणजी स्वामी ने अभिनिष्क्रमण किया तो मानो कठिनाई भी स्वागत करने, सहचर बनने आ गयी।
जैसे भीखण जी स्वामी में बुद्धि का क्षयोपशम अच्छा था, लगता है मनोबल का भी क्षयोपशम उनमें विशिष्ट था। आज का दिन तेरापंथ धर्म संघ के जन्म की पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ है। भिक्षु स्वामी के जीवन से हम साहस-मनोबल की प्रेरणा ले सकते हैं, उनके जैसी निर्मल प्रतिभा हम में भी विकसित हो। तटस्थ, यथार्थ अन्वेषण करने वाली प्रतिभा हो। हम में भी हमारे आराध्य के प्रति, नियमों व यथार्थ के प्रति श्रद्धा और निष्ठा की भावना हो। पूज्य प्रवर के स्वागत में जनता कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल ढोके, सरपंच राजू भाऊ शेलके एवं जय कुमार चानोदिया ने अपने भाव व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।