शांति और धैर्य से हो सुनने का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
संयम सुमेरू आचार्य श्री महाश्रमण जी आज प्रात: अपनी धवल सेना के साथ श्री अमोलक जैन विद्या प्रसारक मण्डल, कड़ा पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि आदमी सुनकर कल्याण को जानता है और पाप को भी जान लेता है। कल्याण और पाप को जानकर जो श्रेय है, उसका समाचरण करना चाहिये। जानने का एक सक्षम साधन कान होता है। सुनना ज्ञानवर्धन में सहायक होता है। विद्यालयों में अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं, इनके साथ अध्यात्म विद्या भी पढ़ाई जाये तो विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आ सकते हैं।
हमें दो कान और एक मुंह मिला है, मानो यह संदेश दे रहे हैं कि सुनो ज्यादा बोलो कम। हम कानों का बढ़िया उपयोग करें। साधु-संतों के प्रवचन सुनने से हम पापों से बच सकते हैं, हमें अनेक जानकारियां मिल सकती है और कई पुरानी जानकारियां पुष्ट हो सकती हैं। कभी-कभी श्रोता को व्यक्तिगत जीवन की समस्या के समाधान का रास्ता भी मिल सकता है। अच्छे वक्ता साधु को सुनने से श्रोता भी कभी एक अच्छा वक्ता बन सकता है। शांति और धैर्य के साथ सुनने का प्रयास करें और सुनकर धर्म को जानने का प्रयास करें। सुनते-सुनते वैराग्य भाव भी बढ़ सकता है। भगवान महावीर के पास कितनों ने सुना होगा, गौतम स्वामी जैसे कितने शिष्यों ने सुनकर धर्म को जाना होगा। भगवती सूत्र में गौतम स्वामी के प्रश्न और भगवान महावीर के उत्तर प्राप्त होते हैं, मानो कि भगवती सूत्र ज्ञान का एक सिंधु है ।
आचार्य प्रवर ने प्रसंगवश कहा कि श्री अमोलक ऋषि का नाम मैंने बहुत पहले सुना था। अमोलक ऋषि की बत्तीसी को पढ़कर आगम स्वाध्याय किया जाता था। पूज्यवर ने आगे कहा कि श्री अमोलक जैन विद्या प्रसारक मंडल ने सौ वर्ष का काल प्राप्त कर लिया है। जो किया, अधिकारी उसका आकलन करे, और आगे क्या धार्मिक सेवा दी जा सकती है उसकी योजना बनाए। सौवें वर्ष के निमित्त से अनेक ठोस कार्य हो सकते हैं। चिन्तन, निर्णय और क्रियान्विति अच्छी हो तो अच्छा कार्य हो सकता है। पूज्य प्रवर की अभिवन्दना में संस्थान के छात्रों ने प्रार्थना, स्थानीय महिलाओं एवं संस्थान की छात्राओं ने स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। बालिका सृष्टि दलवी, वाइस प्रिंसिपल जवाहर भंडारी एवं हेमंत पोखरणा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।