अपने-अपने कर्त्तव्य के प्रति रहें सजग : आचार्य श्री महाश्रमण
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी आज प्रातः चिंचपुर पधारे। जिला परिषद् विद्यालय में मंगल देशना प्रदान कराते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि जीवन में कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का विवेक होना चाहिये, जिस व्यक्ति में यह विवेक नहीं होता है, वह अनिष्ट के गर्त में गिर सकता है। आचार्य श्री तुलसी के ग्रन्थ 'कर्त्तव्य षडत्रिंशिका' में बताया गया है कि जो लोग अपने कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य को नहीं जानते हैं, उनका ऐसा अनिष्ट हो सकता है, जिसकी उन्होंने कल्पना भी न की हो। कर्त्तव्य का बोध होना और कर्त्तव्य के प्रति सजग होना, यह आदमी के जीवन की बहुत महत्वपूर्ण बात होती है। माता-पिता का सन्तान के प्रति सांसारिक कर्त्तव्य होता है।
अक्षय तृतीया भगवान ऋषभ की तपस्या की सम्पन्नता से, दान से जुड़ी हुई है। अक्षय तृतीया एक अच्छा दिन माना जाता है। भगवान ऋषभ ने लोगों को सांसारिक ज्ञान भी दिया था। भगवान ने लोगों को सावद्य चीजें भी सिखाई थी। उसके दो कारण हैं- लोकानुकम्पा और कर्त्तव्य। कर्त्तव्य सावद्य भी हो सकता है और निरवद्य भी हो सकता है। गृहस्थ का अपना कई प्रकार का कर्त्तव्य हो सकता है। साधु का भी अपना कर्त्तव्य होता है। साधु का पहला कर्त्तव्य है अपने साधुत्व की रक्षा करना। फिर दूसरा कर्त्तव्य जनोद्धार का, कल्याण का कार्य हो सकता है। वृद्ध संत हैं तो उनकी सेवा भी करनी चाहिए। कहीं- कहीं स्वाध्याय को गौण कर सेवा देना भी आवश्यक हो सकता है। सेवा महान धर्म है।
सेवा देना कठिन काम भी हो सकता है। सेवा करने वाले को सुनना भी पड़ सकता है, सहन करना भी हो सकता है। सेवा लेने वाले उदारता रखें ताकि सेवा देने वालों का चित्त भी अच्छा रहे। सेवा लेने और सेवा देने वाले दोनों अपने-अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहे, एक-दूसरे के पूरक बन कर काम करें। व्यक्ति कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहे। पूज्य प्रवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच संतोष धवले ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।