आचार्यश्री तुलसी ने दिया था 'महाप्रज्ञ' का सार्थक अलंकरण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्यश्री तुलसी ने दिया था 'महाप्रज्ञ' का सार्थक अलंकरण : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्य महाप्रज्ञ जी के 15वें महाप्रयाण दिवस पर उनके अनंतर पट्टधर ने दी उनके जीवन, साहित्य एवं व्यवहार से िशक्षण लेने की प्रेरणा

तेरापंथ धर्मसंघ के दशम् अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के सक्षम पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में अनेक प्रकार के मनुष्य पैदा होते हैं। किसी जगह, किसी गांव में ऐसे बच्चे पैदा होते हैं, जो आगे जाकर महान व्यक्ति के रूप में उभर जाते हैं। छोटे बच्चे में महान व्यक्ति के बीज मूल में हो सकते हैं जो भविष्य में उभर कर आ सकते हैं।
आज आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का 15वां महाप्रयाण दिवस है। वैशाख कृष्णा एकादशी को सरदारशहर में उन्होंने अंतिम श्वास लिया था। महाप्रज्ञ शब्द एक शास्त्रीय शब्द है। आचार्य श्री तुलसी ने अपने सुशिष्य मुनिश्री नथमलजी स्वामी 'टमकोर' को महाप्रज्ञ अलंकरण देकर इस शास्त्रीय शब्द का उपयोग किया था। यह गंगाशहर का प्रसंग है, आचार्य श्री तुलसी ने उस समय संभवतः यह गीत भी गाया था- स्वामीजी थांरी साधना री मेरू सी ऊंचाई। कुछ ही समय के बाद राजलदेसर मर्यादा महोत्सव विक्रम संवत 2035 में आचार्य श्री तुलसी द्वारा 'महाप्रज्ञ' अलंकरण को महाप्रज्ञ नामकरण में परिवर्तित कर युवाचार्य महाप्रज्ञ कर दिया गया था।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की दीक्षा सरदारशहर में पूज्य कालूगणी के कर कमलों से हुई थी। सरदारशहर में उनका संसारपक्षीय ननिहाल था, दीक्षा भी हुई थी, न्यारा का एक चातुर्मास भी सरदारशहर में हुआ था, और महाप्रयाण भी सरदारशहर में हो गया था। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने अपने पूरे जीवन काल में केवल दो ही चातुर्मास न्यारा में किए थे, एक सरदारशहर और दूसरा दिल्ली।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का जन्म खुले आकाश में हुआ था। छोटे बच्चे के अन्दर संस्कार, कर्म का क्षयोपशम हो सकता है, जिसके आधार पर व्यक्तित्व और कर्तृत्व का निर्माण भी हो सकता है।आचार्य महाप्रज्ञ जी ने पूज्य कालुगणी का कृपा प्रसाद भी प्राप्त किया, मुनि तुलसी से जुड़े रहे। बाद में आचार्य तुलसी की सन्निधि में रहे और उनकी विकास की यात्रा आगे चली। संस्कृत भाषा और हिन्दी भाषा का वैदुष्य भी प्राप्त किया, उनकी भाषा शुद्ध और स्पष्ट थी। वे एक विद्वान वक्ता, एक दार्शनिक संत के रूप में सामने आए। उन दिनों में मुनि नथमल जी, मुनि बुद्धमल जी, मुनि नगराज जी(संघ मुक्त) ये तीन संत विद्वान संतों के नाम से प्रसिद्ध थे।
उनकी बुद्धि प्रखर थी। आचार्य तुलसी ने जो महाप्रज्ञ अलंकरण दिया था, वह सार्थक अलंकरण था। आचार्य महाप्रज्ञ जी में वैदुष्य था, संस्कृत, प्राकृत का ज्ञान था, आचार्य भिक्षु के साहित्य का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया था। उसकी निष्पत्ति थी 'भिक्षु विचार दर्शन' पुस्तक। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की एक और किताब है - 'जैन दर्शन मनन और मीमांसा' जिसका विद्वदजनों में विशेष स्थान है। पूज्य प्रवर ने चारित्रात्माओं को इस पुस्तक के स्वाध्याय की प्रेरणा दी। आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि एक महत्वपूर्ण उनका सेवा का कार्य है- आगम संपादन का। उनके श्रुतलेखन कार्य का मुझे भी सौभाग्य मिला था। आगम संपादन में उन्होंने अत्यधिक श्रम किया था।
हमारे धर्म संघ में गुरुदेव तुलसी की वाचना प्रमुखता में आगम संपादन का कार्य शुरू हुआ था। गुरुदेव तुलसी का अपना पांडित्य था। उनका लंबा आचार्यकाल था, उन्होंने लंबी-लंबी यात्राएं भी की थी। कुछ अंशों में गुरुदेव तुलसी राजा थे तो मुनि नथमल जी उनके महामंत्री थे। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की अनुपस्थिति में रहने का 14 वर्ष का काल लगभग संपन्न हो रहा है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के पास रहने का मुझे तो विशेष मौका मिला। वे नियमित योग साधना-ध्यान साधना करते थे। उनकी जीवन शैली काफी व्यवस्थित थी। शरीर की काफी अनुकूलता थी, यह एक प्रकार की पुण्यवत्ता थी। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम भी अनुकूल था, कषायमंदता - शांत मुद्रा थी, आयुष्य भी लंबा, नाम, गोत्र कर्म देखें तो जैन-जैनेतर समाज में भी उनका नाम था। गुरु के सामने वे आचार्य पद पर स्थापित हो गये थे। गुरुदेव तुलसी ने कहा था- तुलसी में महाप्रज्ञ को देखो, महाप्रज्ञ में तुलसी को देखो। दोनों में अद्वैत था। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को भी आज के ही दिन एक वर्ष पूर्व बहुश्रुत परिषद् के संयोजक पद पर स्थापित किया गया था। आचार्य प्रवर ने पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की स्मृति में 'तेरापथ का राजा' गीत का सुमधुर संगान करवाया। पूज्य प्रवर ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन से, साहित्य से, व्यवहार से शिक्षण लेने की प्रेरणा प्रदान की।
मुख्य प्रवचन से पूर्व साध्वीवृंद ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी। 'क्षेमंकर' मुनि सिद्धकुमार जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। आचार्य प्रवर के स्वागत में दिगंबर समाज से ब्रह्मचारिणी बहन एवं संजय कासलीवाल ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।