विनय से करें अहंकार के नाश का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
आदमी के भीतर अनेक वृतियां होती है। साधारण आदमी में जहां गुस्से की वृत्ति होती है, तो अहंकार की संज्ञा, माया के संस्कार और लोभ की चेतना भी होती है। ये चार कषाय हमारी वृत्तियां होती हैं। राग और द्वेष में ये चारों कषाय समाविष्ट हो जाते हैं। ये विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनसमूह को पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाए। शास्त्र में कहा गया है कि उपाय के द्वारा काेई विनय की प्रेरणा दे तो अहंकार में न आये। जो हमारा हितैषी है, उसकी बात सुनें। कितना ग्रहण करना ये अलग बात है। घमंड कई बार आदमी के भीतर नाग की तरह फुफकारता है।
अहंकार कई चीजों का हो सकता है। जो ज्ञान का अहंकार करता है, वह हाथी की तरह मदान्त हो जाता है, पर जब वह दूसरे के ज्ञान को देखता है तब वह पश्चाताप करता है। अगर नया ज्ञान किसी से मिले तो उसे शालीनता से स्वीकार करें। ज्ञान का अहंकार नहीं करना चाहिए। धन और रूप आदि का अहंकार भी नहीं करना चाहिए, ये सब पुद्गल हैं, इनमें परिवर्तन होता रहता है।बड़ी तपस्या करने वाले भी अहंकार न करें। अक्षय तृतीया का कार्यक्रम भी सामने है, निष्काम तपस्या चले। सत्ता का घमंड नहीं करना चाहिये। सत्ता सेवा के लिए मिलती है, सत्ता का बढ़िया उपयोग करें तो अधिकार उपहार है, वरना भार है। अधिकार उपकार मांगता है, वरना वह धिक्कार है।
अभिमान तो मदिरा पान की तरह है। हर किसी को ऊंचा पद भी नहीं मिलता है, पद के अनुरूप कद भी होना चाहिए। हम विनय से अहंकार का नाश करने का प्रयास करें। दो वर्षों पश्चात गुरुदर्शन कर रहे मुनि पुलकित कुमार जी एवं मुनि आदित्यकुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महाराष्ट्र विधान सभा के पूर्व सभा पति नाना हरिभाऊ बागड़े ने पूज्य प्रवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। औरंगाबाद महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।