सक्षमता में भी क्षमा धारण कर लेना है बड़ी बात : आचार्यश्री महाश्रमण
वीतराग पथ दर्शक आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आर्हत् वांग्मय के माध्यम से प्रेरणा देते हुए फरमाया कि दस धर्मों में पहला धर्म है क्षमा। जो भी क्षमा धारण करता है उसका हित निश्चित होता है। जैन शासन में पर्युषण, संवत्सरी, दस लक्षण आदि पर्व आते हैं। भगवती संवत्सरी महापर्व क्षमा से जुड़ा हुआ है। क्षमा देना और क्षमा मांगना, सब प्राणियों के प्रति मैत्री भाव होना बहुत अच्छी साधना होती है। मन में आक्रोश है उसको भी पी जाओ। जो हमारा बुरा कर दे, नुकसान कर दे उसको भी क्षमा कर देना बहुत ऊंची बात है। आदमी की कमजोरी हो सकती है वह गुस्से में आ जाता है, पर धन्य हैं वे लोग जो जिनके मन में कोई गुस्सा नहीं, प्रतिशोध की भावना नहीं है। शत्रु के साथ भी मित्रता पूर्ण व्यवहार करना उदारता है।
शक्ति होने पर भी क्षमा रखना बड़प्पन है। क्षमा वीरों का भूषण है। भगवान महावीर ने कितने उपसर्ग सहे, वे तो क्षमा के आदर्श पुरुष हैं। आचार्य भिक्षु के सामने भी कठिनाइयां आई, आचार्य श्री तुलसी के जीवन में प्रतिकूलता आई थीं। क्षमा महान धर्म है, विवशता में नहीं बोलना कोई बड़ी बात नहीं है, सक्षमता में भी क्षमा धारण कर लेना बड़ी बात है। शांति रखने का प्रयास करें, दूसरे की बराबरी करने का प्रयास नहीं करें। बराबरी, अनुकरण करो तो अच्छे काम का करो। क्षमा धर्म हमारे जीवन में पुष्ट रहे। पूज्य प्रवर के स्वागत में पारस ओस्तवाल ने अपने विचार व्यक्त किए। जालना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों आचार्य श्री के दीक्षा कल्याण वर्ष के उपलक्ष में अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।