कषाय मुक्ति से आत्म उत्थान की दिशा में बढ़ें आगे : आचार्यश्री महाश्रमण
क्षमा धर्म के साधक आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आगमवाणी की अमृतवर्षा कराते हुए फरमाया कि हमारी आत्मा अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण कर रही है। परिभ्रमण इसलिए कर रही है कि कर्म आत्मा के साथ जुड़े हुए हैं उन कर्मों के कारण आत्मा आगे से आगे, आगे से आगे अपना आयुष्य का बंधन करती रहती है, जन्म लेती रहती है। जन्म होता है, तो फिर मृत्यु तो होनी ही होती है। इस जन्म और मरण को दुःख कहते हैं। पाप कर्म जितने भी लगते हैं वे सारे मोह से उत्पन्न होने वाले होते हैं। जन्म-मरण का कारण कर्म है। राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। मन के साथ राग-द्वेष के भाव जुड़ते हैं तो मन का योग अशुभ हो जाता है। कहा गया है कि मोहकर्म अलग रहता है तो मन, वचन, काय की प्रवृतियां उज्जवल-शुभ रहती हैं और मोह कर्म का संयोग हो जाता है ये प्रवृत्तियां दूषित या मलिन हो जाती है।
हमारी साधना यह होनी चाहिए कि हम राग-द्वेष को प्रतनु करें। चाहे दिगम्बर बन जाओ या श्वेतांबर बन जाओ इतने मात्र से मुक्ति नहीं है। कषाय मुक्ति ही मुक्ति का आधार है। अनुकूलता से राग और प्रतिकूलता से द्वेष का भाव चलता रहता है, ये राग-द्वेष जाल है, इस जाल से हम अपनी आत्मा को निकाल दें। द्वेष तो पहले चला जाता है, पर राग फिर भी थोड़ा सा रह जाता है। वीतराग के द्वेष नहीं होता, वीत-द्वेष के राग रह सकता है। अक्षय तृतीया भगवान ऋषभ के वर्षीतप की सम्पन्नता से जुड़ी है, इस उपलक्ष में आज भी कई लोग इस दिन अपने वर्षीतप की सम्पन्नता करते हैं। भगवान ऋषभ ने गृहस्थ का जीवन भी जीया, बाद में साधु, केवली और तीर्थंकर भी बन गये। अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए हैं उनके निर्वाण का 2550वां वर्ष चल रहा है। काल की चक्की को तो रोका नहीं जा सकता पर समय का हम बढ़िया उपयोग करने का प्रयास करें। भगवान ऋषभ के साधु ऋजु जड़, भगवान महावीर के साधु वक्र जड़ एवं बीच के बाईस तीर्थंकरों के साधु ऋजु प्राज्ञ बताए गए हैं। आचार क्रम भी सबके समय में अलग-अलग हो सकता है।
भगवान ऋषभ से लेकर भगवान महावीर तक के तीर्थंकरों को एक बार भी नमस्कार करलें तो कल्याण हो सकता है। साधुत्व आना भी बड़ी बात है, वर्तमान में तो अष्टम् गुणस्थान भी प्राप्त नहीं हो सकता है, वर्तमान में साधु में छठा-सातवां गुणस्थान ही हो सकता है। हमें वीतरागता की तरफ ले जानेवाला अध्यात्म का पथ प्राप्त है। जिन शासन के छत्र में भैक्षव शासन-श्वेताम्बर तेरापंथ परम्परा का साया हमें प्राप्त है। हम पंच परमेष्ठि को नमस्कार कर आत्म उत्थान की दिशा में आगे बढ़ें। पूज्य प्रवर के स्वागत में सरस्वती धाम की ओर से ऋषभराज गंगवाल ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।